________________
२.
नोआगमद्रव्यमें शरीरका ग्रहण किया गया है इसालये आपसमें विरोध रहने के कारण आगमद्रव्यमें. तरा है भाविनोआगमका समावेश नहीं हो सकता। यदि कदाचित् यह शंका की जाय कि शरीर कर्म और है।
है नोकाँका समुदाय स्वरूप है जब ज्ञायक शरीरमें ही कर्म और नोकर्मोंका समावेश हो जायगा तब
नो आगमद्रव्यका एक तद्व्यतिरिक्त भेद मानना और उसके कर्म और नोकर्म भेद मानना यह झगडा - व्यर्थ है ? सो भी ठीक नहीं । औदारिक वैक्रियक और आहारक इन तीनों ही शरीरोंमें ज्ञायकपना 9 माना है, तैजस और कार्माण कर्मरूप शरीरोंमें तथा शरीररूप परिणत होनेवाले आहार आदि नोकर्मः | ६ रूप पुद्गलोंमें ज्ञायकपना नहीं हो सकता यदि इनमें भी ज्ञायकपना मान लिया जायगा तो विग्रहगति || ₹ में तैजस और कार्माण शरीर मौजूद हैं वहांपर भी जीवको ज्ञान होना चाहिये परन्तु होता नहीं। इस है। है रीतिसे कर्म और नोकर्मका जब शरीरमें समावेश नहीं हो सकता तब तव्यतिरिक्त नामका नो.1
आगमद्रव्यका भेद और उसके कर्म और नोकर्म भेदोंका मानना परमावश्यक है। यदि यहां पर यह
शंका की जाय कि कर्म और नोकर्मोंका ज्ञायक शरीरमें समावेश न सही, भावि नोआगमद्रव्यका और 9 कर्म नोकर्मका विषय प्रायः एक ही है क्योंकि शरीरमें होनेवाली भविष्यत् कालकी पर्यायका वर्तमानमें 5
आरोप भावि नौआगमद्रव्यका भी विषय है और कर्म नोकर्मका भी, इसलिये कर्म और नोकर्मके अर्थ * की सिद्धि भावि नो आगमसे ही हो जायगी, तद्व्यतिरिक्तका कर्म नोकर्भ भेद मानना निरर्थक है?
सो ठीक नहीं। जो पुरुष-आत्मा, मनुष्य आदि पर्याय वा सम्यग्दर्शनके शास्त्रका जानकार है उसीके द्र कर्म और नोकर्मों का ग्रहण है किंतु जो पुरुष मनुष्य आदि पर्याय वा सम्यग्दर्शनके शास्त्रका जानकार | नहीं है उसके कर्म और नौकर्मोंका ग्रहण नहीं । भावि नो आगम द्रव्यमें तो जो पुरुष मनुष्य आदि
POSTOSTERIORDERRORORS
SAREEREGARASSAGAR-
SANSAR.Reल