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________________ आशयकी समता रखनेवाले जितने भी उदाहरण मिलें सब ज्ञायक शरीर नोआगमद्रव्य के उदाहरण समझ लेने चाहिये । भावि नोआगमद्रव्यका उदाहरण ग्रंथकारोंने भविष्यत पर्यायकी अपेक्षासे दिया है परन्तु वहाँ पर भूत भविष्यत वर्तमान तीनों पर्यायोंकी अपेक्षा समझ लेनी चाहिये अर्थात् जो शरीर मनुष्य आदि जीवन पर्याय वा सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति के प्रति अभिमुख है आगे जाकर प्राप्त करनेवाला है उसको इम समय भी मनुष्य आदि वा सम्यग्दर्शनका धारक कहना यह जिसतरह भावि नोआगमका विषय है। उसी तरह जिस शरीर से मनुष्य आदि जीवन पर्याय पडिले प्राप्त कर ली है उसे भी मनुष्य आदिवा सम्यग्दर्शनका धारक कहना यह भूतकालकी अपेक्षा अनुपस्थित भी भावि नोआगमका विषय है तथा जो शरीर वर्तमानकाल में मनुष्य आदि जीवन पर्याय प्राप्त कर रहा है, पूर्णरूप से प्राप्त नहीं कर चुका उसे भी मनुष्य आदि वा सम्यग्दर्शनका धारक कहना यह वर्तमानकालकी अपेक्षा अनुपस्थित भी भावि नो आगमद्रव्यका विषय है। ऊपर यह कहा जा चुका है कि भावि नोआगम द्रव्यमें ज्ञायकताका संबंध नहीं । आत्मासे भिन्न शरीर आदि सभी द्रव्यका यहां पर ग्रहण है इसलिये इसके लक्षणानुकूल जितने भी उदाहरण मिलें सब भावि नो आगमके उदाहरण समझ लेने चाहियें। जिस ईंट चूनासे घर बननेवाला है उसे अभीसे घर कह देना यह भविष्यत कालकी अपेक्षा अनुपस्थित, जो घर नष्ट हो चुका उसे भी घर कहना यह भूतकालकी अपेक्षा अनुपस्थित, जो घर बन रहा है, अभी बनकर पूर्ण नहीं हुआ उसे भी घर कहना यह वर्तमानकी अपेक्षा अनुपस्थित इत्यादि सभी उदाहरण भावि नो आगमद्रव्य के ही जानने चाहिये । भाषा १३२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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