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मध्याय
चरा० माषा
18 समय परद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा वस्तुमें नास्तित्व है उसीसमय स्वरूपादि चतुष्टयकी अपेक्षा उसमें
अस्तित्व भी है इसलिए नास्तित्व के रहनेपर अस्तित्वका अभाव नहीं इसलिए यहॉपर प्रतिबंध्यप्रतिबंधक भावविरोधी भी संभावना नहीं। (इस प्रतिबंध्य प्रतिबंधक विरोधका प्रसिद्ध उदाहरण चंद्रकांतमणिके द्वारा अग्निका दाहन होना भी है। यहॉपर चंद्रकांत मणि प्रतिबंधक और अग्निका दाह प्रतिबध्य है। जलती हुई अग्निके आगे जिससमय चंद्रकांतमणि आ जाती है उमसमय उसका जलना बंद हो जाता है परंतु ऐसा प्रतिबध्यप्रतिबंधक भाव अस्तित्व नास्तित्वमें नहीं क्योंकि जिससमय अपने खरूपप्ते वस्तुमें ||६|| | अस्तित्व रहता है उसीसमय परस्वरूपसे नास्तित्व भी रहता है यह बात नहीं कि आस्तित्वकी मौजूदगीमें |
नास्तित्वका प्रयोजन बंद हो जाय और नास्तित्वकी मौजूदगीमें अस्तित्वका प्रयोजन बंद हो जाय । | इसलिए अस्तित्व नास्तित्व में प्रतिबध्यप्रतिबंधक भावरूप विरोधका भी संभव नहीं हो सकता।) इसरूपसे अस्तित्व नास्तित्व के अंदर किसी भी विरोधका लक्षण न घटनेपर इनमें विरोध बतलाना केवल वचनमात्र ही है इसलिये विवक्षाके भेदसे अनेकधर्मात्मक जीवपदार्थ अविरुद्धरूपसे व्यवस्थित है।
विशेष-उपर्युक्तरूपसे अनेकांतवादमें विरोध दोषका परिहार करदिया गया परंतु कोई कोई महा|| शय इस अनेकांतवादको छलवाद कहते हैं, उनका कहना इसप्रकार है
यह एकांतवाद छलस्वरूप है क्योंकि जिस पदार्थको अस्ति कहा जाता है उसीको नास्ति कहा जाता है जो पदार्थ नित्य कहा जाता है वही अनित्य भी कह दिया जाता है इंसी रूपसे अनेकांतवादका ई प्ररूपण माना है। सो ठीक नहीं । अनेकांतवादमें छलके लक्षणकी संभावना हो ही नहीं सकती क्योंकि "अभिप्रायांतरेण प्रयुक्तस्य शब्दस्यार्थातरं परिकल्य दूषणामिधान'छलमिति” अर्थात् किसी दूसरे अभि.
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