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________________ अध्याय SAEGA रूपसे विनाश भी न होगा इसलिए एक आग्रफलमें रहनेवाले कालेपन पीलेपनके समान एक पदार्थमें का अस्तित्व नास्तित्वका सहानवस्थानलक्षण विरोध संभव नहीं हो सकता। इस रीतिसे अस्तित्व नास्तित्वमें || इस विरोधकी कल्पना भी निरर्थक है। तथा। अस्तित्व नास्तित्वमें प्रतिबंध्यप्रतिबंधकरूप विरोध भी नहीं हो सकता क्योंकि जहाँपर एक कार्य प्रतिबंध्य और दूसरा उसे न होने देनेवाला प्रतिबंधक हो वहांपर यह विरोध माना जाता है। इसका उदाहरण है-फल और डंठल । संयोगकी विद्यमानतामें भारीपनके प्रतिबंधक संयोगके रहनेपर फलका नीचे न गिरना है क्योंकि जबतक फल और डंठलका संयोग रहता है तबतक नीचे गिरने में कारण भारीपनका प्रतिबंधक वह संयोग माना जाता है इसलिए वहांपर पतन कर्म अर्थात् आमका नीचे गिरना नहीं होता क्योंकि वहां भारीपनका प्रतिबंधक संयोग विद्यमान है किंतुजहांपर भारीपनका है प्रतिबंधक वह फल और डंठलका संयोग नहीं होता वहां फल गिरता प्रत्यक्ष दीख पडता है। ऐसा वचन , भी है 'संयोगाभावे गुरुत्वात्पतनमिति' अर्थात् जिससमय संयोग नहीं रहता उस समय भारी होनेके 5 कारण फल नीचे गिर पडता है परंतु जिसप्रकार यहांपर भारीपनका प्रतिबंधक संयोग पतनकार्यको ६ नहीं होने देता अतएव संयोगकी विद्यमानतामें पतनरूप कार्य नहीं दीख पडता उस प्रकार अस्तित्व, नास्तित्वके प्रयोजनका प्रतिबंध नहीं करता क्योंकि जिस कालमें वस्तुमें स्वरूपादि चतुष्टय की अपेक्षा अस्तित्व विद्यमान है उससमय परद्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा नास्तित्व की भी वहांपर उपलब्धि है इस | लिये अस्तित्वकी अनुपलब्धि अर्थात् नास्तित्व भी वहांपर मोजूर है इसलिए अस्तित्व की मौजूदगी में नास्तित्वका अभाव नहीं। तथा नास्तित्व भी अस्तित्व के प्रयोजनका प्रतिबंध नहीं करता क्योंकि जिस ORLSODECEBSTRUCHAR १२११
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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