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________________ अध्याय |माना जाता और वहांपर एक शब्दका वाच्य अर्थ एक ही लिया जाता है तथा एवंभूतनयमें वर्तमान का कालसंबंधी प्रवृत्तिका कारण एक शब्दका एक ही अर्थ लिया जाता है। शंका-जो पदार्थ आपसमें र विरोधी होते हैं वे एक जगह नहीं रह सकते । अस्तित्व नास्तित्व धर्म भी आपसमें विरोधी हैं इसलिए एक पदार्थमें एक जगह वे अविरोधरूपसे नहीं रह सकते इसलिए ऊपर जो उनका एक जगह अविरोधरूपसे रहना बताया गया है वह अयुक्त है ? उत्तर विरोधाभावस्तल्लक्षणाभावात् ॥ २३॥ आस्तित्व नास्तित्व आदिका आगमके अनुसार एक वस्तुमें उल्लेख अपेक्षासे किया गया है इसलिए विरोध दोषकाजो लक्षण माना गया है वह लक्षण यहाँपर नहीं घटता इसलिए अस्तित्व नास्तित्व के विरोध की कल्पना वृथा है। इस विरोध दोष के तीन भेद माने हैं-पहिला बध्यघातकभाव र दूसरा सहानवस्थानलक्षण २ और तीसरा प्रतिबध्यप्रतिबंधकभाव ३ । जहाँपर एकके द्वारा दूसरा नष्ट किया जाता है वहां हूँ | बध्यघातकविरोध होता है तथा इसके उदाहरण सर्प नौला एवं अग्नि और जल आदिक हैं क्योंकि सर्प RI और नोला जहाँपर मिले कि उसीसमय नौला सांपका बध कर डालता है इसीप्रकार जलती हुई अग्निपर | पानी पडा कि वह उसीसमय अग्निको बुझा देता है । यह बध्यघातकभावरूप विरोध एक कालमें विद्य. | मान दो विरोधी पदार्थों के आपसमें संयोग होनेपर होता है क्योंकि जिप्तप्रकार दिवधर्म दो पदार्थों में | रहनेके कारण अनेकाश्रय है उसीप्रकार संयोगरूप गुण भी अनेक पदार्थों के संबंध होता है इसलिए वह ६|| भी अनेकाश्रय है। यहांपर यह न समझ लेना चाहिये कि विना आपसमें मिले भी एक विरोधी पदार्थ दुसरेका घात कर सकता है ? क्योंकि अग्निके साथ संयोग विना किए जल अग्नि नहीं बुझाता यदि BRECRECEPSHREGREASABREARSAGAR GREENSTRUCASSESASURALAB
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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