________________
अध्याय
NER
एक तो अस्तिस्वरूप अंश है और वह एक स्वरूप हे दुसरां अवक्तव्यरूप अंश है और वह अस्तित्व नास्तित्वस्वरूप दो अंशस्वरूप है । अनेक द्रव्यस्वरूप वा अनेक पर्यायस्वरूप कुछ द्रव्यार्थ और कुछ पर्यायार्थका अवलम्बन कर अस्ति अंश है। एकस्वरूप द्रव्य है और उससे अन्यस्वरूप पर्याय है, जहाँपर इन दोनोंकी एक साथ विवक्षा मानी गई है कोई विभाग नहीं माना गया वहां दोनों एक साथ वचनके विषय न होनेके कारण अवक्तव्य अंश है। स्पष्ट तात्पर्य इसप्रकार है--
'स्यादस्त्यात्मा' अर्थात् आत्मा है यहांपर द्रव्यस्वरूप सामान्य वा द्रव्यविशेष वा जीवत्व सामान्य वा मनुष्यत्व आदिकी अपेक्षा आत्माका अस्तित्व है तथा द्रव्यसामान्यकी अपेक्षा जहां वस्तुत्वस्वरूपसे वस्तुकी सचा और पर्यायसामान्यकी अपेक्षा अवस्तुस्वरूपसे जहांपर वस्तुकी असचाकी एक साथ अभेद है विवक्षा है वहांपर एक कालमें वस्तुल अवस्तुत्वरूपमे अस्तित्व नास्तित्वका निरूपण नहीं हो सकनेके । कारण अवक्तव्य अंश है। यह यहांपर वस्तुत्व अवस्तुत्वकी अपेक्षा अवक्तव्यत्व कहा गया है किंतु जहां पर जीवत्व मनुष्यत्व आदि दो दो विशेषों की अपेक्षा अस्तित्व नास्तित्वका एक कालमें एक साथ प्रतिपादन नहीं किया जाय वहां भी अवक्तव्य अंश ही कहा जाता है। ये सब वस्तुत्व अवस्तुत्व जीवत्व
मनुष्यत्व आदि एक ही आत्माके भीतर रहनेवाले धर्म हैं इस रीतिसे 'स्थादस्ति चावक्तव्यश्र जीवः' हूँ अर्थात् जीव अस्तित्व और अवक्तव्यत्व दोनों स्वरूप है यह पांचवां भंग निर्वाधरूपसे सिद्ध है। यह
RECENTREPRE
ROFRIE%AER
. प्रश्न-जब जीव एक स्वरूप है तब वह अनेक स्वरूप तो हो नहीं सकता फिर जीवको अनेक व्यस्वरूप जो कहा गया है वह प्रयुक्त है? उत्तर-जीवका लक्षण उपयोग माना है वह उपयोग शानदर्शन स्वरूप है। शानका परिणमन शेयस्वरूप होता है, वहय भनेक द्रव्यस्वरूप है इस रीतिसे जीषको अनेक द्रव्यस्वरूप कहा गया है।
११९