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________________ अध्याय LASH 2 रूप विशिष्ट सामान्यकी अपेक्षाआत्मा है इसप्रकार विशिष्ट सामान्यकी अपेक्षा स्यादस्त्येवात्मा यह - प्रथम भंग है । उसके अभाव रहने पर अर्थात यथाश्रुतसे विपरीत अनात्मत्वरूपसे,आत्मा नहीं है, इस ६ प्रकार विशिष्ट सामान्याभावकी अपेक्षा स्यानास्त्येवात्मा' यह द्वितीय भंग हैं। एक साथ आत्मत्वकी। हूँ सत्ता और अनात्मत्वकी असचाका प्रतिपादक एक शब्द नहीं इसलिये दोनों की एक साथ विवक्षा, + करने पर 'स्यादवक्तव्य आत्मा' यह तीसरा भंग है । तथा जिससमय दोनोंके सत्त्व असत्त्वकी कमसे हूँ. & विवक्षा की जायगी उससमय स्यादस्ति नास्ति आत्मा, यहा चतुर्थ भंग है ॥२॥ तथा * A. विशिष्ट सामान्य और तदभाव सामान्यमें जहां जैसा श्रवण होगा. वहां उसकी अपेक्षा स्यादस्ति है इत्यादि भंगी होंगी। 'स्थादस्त्येवात्मा यहांपुर विशिष्ट सामान्य आत्मत्त पदार्थ हैं, इसलिये उसकी अपेक्षा आत्मत्वरूपसे आत्मा है यह प्रथम भंग है। एवं यह जो विशिष्ट सामान्यकी अपेक्षा प्रथम मंग स्वीकार , किया गया है. उसमें किसी प्रकारका विरोधान पड़े, इस. भय से सामान्यरूपले उस आत्मत्व के अभाव: स्वरूप एवं दूसरे पदार्थस्वरूप पृथिवी जल अग्नि घट पट कर्म आदि रूपसे आत्माका अभाव माननेसे, स्यानास्त्येवात्मा अर्थात पृथिवी आदि, स्वरूपसे आत्मा नहीं है यह दूसरा मंग है । जिससमय विशिष्ट , सामान्य स्वरूप आत्मत्वकी अपेक्षा आत्माकी सचा एवं तदभाव सामान्यस्वरूप घट आदिकी अपेक्षा है आत्माकी असचाकी एक साथ विवक्षा की जायगी उससमय स्यादवक्तव्य यह तीसरा भंग है.। एवं जिस है , समया विशिष्ट सामान्य और तदभाव सामान्य अर्थात् आत्मत्व अनात्मलकी, कमसे विवक्षा की जायगी उससमय स्यादस्ति नास्तिवात्मा यह चतुर्थ भंग होगा ॥ ३ ॥ तथा विशिष्ट सामान्य और उसके विशेषमें जहां जैसा श्रवण होगा वहाँ उसकी अपेक्षा भी सादस्तिक ERY CAMEN
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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