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________________ D CASE % तरा० भाषा १९७५ SHUGER-78ASALASAREEREADARSHA | जिसप्रकार घट पदार्थ है उसीप्रकार पट आदि भी पदार्थ है इसलिये पट आदिके अस्तित्वकी घटमें । प्राप्ति अनिवार्य होगी इसलिये उसकी निवृचिके लिये घटमें विशिष्ट पदार्थपना माना गया हैं अतः । पदार्थ सामान्यकी सामर्थ्य से प्राप्त पट आदिकी सचारूप जो अर्थस्वरूप है उसके निषेध करनेसे घटका वास्तविक स्वरूप लब्ध होता है, यदि घटको विशिष्ट पदार्थ न माना जायगा और पट आदिकी सचाका निषेध न किया जायगा तो वह घटरूप अर्थ ही नहीं कहा जायगा अथवा उसकी पट आदि पदार्थोंके Bा स्वरूपसे तो जुदाई होगी नहीं फिर पट आदि विपरीत पदार्थ स्वरूप ही कहा जायगा इसलिये पट | आदि पदार्थों की सचाके निषेधके लिये घटको विशिष्ट पदार्थ मानना ही अत्यावश्यक है । अर्थात् जैसे घटमें पदार्थत्व और सत्त्व है उसीप्रकार वे धर्म पटमें भी हैं इसलिये विना पटके धर्नाका निषेध किये घंट पटस्वरूप ही ठहरेगा। तथा- जो पट आदि स्वरूपसे घटका अभाव कहा गया है वह अभाव भी घटका ही धर्म है क्योंकि जिसप्रकार घटके स्वरूपके आधीन घटकी सिद्धि निश्चित है उसीप्रकार पटादिस्वरूपसे जो अभाव कहा गया का है उसके आधीन भी घटकी सिद्धि निश्चित है उसकी अपेक्षा विना किये घटकी सिद्धि नहीं हो सकती। | इसलिये वह पट आदि स्वरूपसे अभाव भी घटहीकी पर्याय है किंतु उसको जो परपर्याय कहा जाता है। B वह उपचारमात्र है क्योंकि वह परपदार्थ पटादि विशेषणोंकी अपेक्षा कहा गया है इसलिए परनिमित्तक छ होनेसे वह परपर्याय कह दिया जाता है तथा यह नियम है कि "स्वपरविशेषणायचं हि वस्तुस्वरूप-5 है| प्रकाशनं" वस्तुके स्वरूपकी जो प्रकटता है वह स्व और परस्वरूप विशेषणोंके आधीन है। पटाभाव भी | १-परके निमित्तसे होनेवाला किंतु स्वस्वरूप । ASREACHESIRECOGNABAR a -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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