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अध्याय
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अभावके अस्तित्व माननेमें जो दोष कह आये हैं वे समझ लेने चाहिये । अर्थात्-'एकांतस्वरूपसे 5 भाव अस्तित्वस्वरूप है' यदि यह माना जायगा तो सर्वात्मना अस्तित्व स्वीकार करनेपर निसप्रकार ३ वह स्वस्वरूपसे अस्तित्वस्वरूप माना जायगा उसप्रकार अभावस्वरूपसे भी अस्तित्वस्वरूप मानना है पडेगा इसरीतिसे भाव और अभाव दोनोंके अस्तित्वका सांकर्य होनेसे अस्थिरताके कारण दोनोंका छ ही अभाव हो जायगा अथवा भावका एकांतसे यदि नास्तित्व माना जायगा तो जिसप्रकार वह स्वस्व-हूँ ८ रूप अपने भावस्वरूपसे नहीं है उसप्रकार अभावस्वरूपसे भी उसकी नास्ति कही जायगी इसरीतिसे 6 हूँ भावके अभावसे एवं अभावके विरोधी भावके न रहनेसे अभावमात्र ही तत्त्व सिद्ध न होगा इसरीतिसे र भाव और अभावके अभाव होनेपर सर्वथा अभाव ही सिद्ध होनेसे घट पट आदि भाव और घटाभाव
पटाभाव आदि अभाव कोई भी पदार्थ सिद्ध न होगा। इसलिये स्थादस्तिभावः, स्थानास्तिभावः, 5 स्यादस्त्यभावः,स्यानास्त्यभावः, स्यादस्ति जीवः, स्यान्नास्ति जीवः, इसतरह कचित् अस्तित्व नास्तित्व ६ स्वरूप ही तत्त्व मानना उचित है। अब यहांपर वादीके अभिप्रायको आश्रयकर यह कहना है कि
इसप्रकार उपर्युक्त रीतिसे जब आत्मा और घट पट आदि पदार्थोंकी सिद्धि में भाव और अभाव दोनोंकी आपसमें अपेक्षा सिद्ध है अर्थात् बिना दोनोंकी आपसमें अपेक्षा किसी भी वस्तुकी है सिद्धि नहीं हो सकती तब अर्थसे और प्रकरणसे घटमें नहीं रहनेवाली जो पटकी सचा है उसका निषेध घटमें करना व्यर्थ है क्योंकि विना उस भावकी अपेक्षा किये घट पदार्थ सिद्ध नहीं हो सकता। अर्थात् ।
घटमें पटकी सत्ताका निषेध नहीं करने पर भी सुतरां सिद्ध हो जायगा फिर जो निषेध किया जाता है हु वह व्यर्थ है । सो ठीक नहीं। यदि घटमें पटादिकी सचाका निषेध न किया जायगा तो सामान्यरूपसे
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