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COMHEMA
SARASHTRACANCE
नियम वा निर्धारण तो होगा नहीं इसलिए पक्षमें नित्यत्वका प्रसंग रहनेसे नित्यत्व भी मानना पडेगा इसीप्रकार यदि आस्तित्व सामान्य से ही जीव माना जायगा और पुद्गल आदिमें रहनेवाले आस्तत्व विशेषसे न माना जायगा तब 'पुद्गल आदिके आस्तित्वसे जीवका आस्तित्व नहीं' इसप्रकार कहनेवाले | वादीने ही यह बात स्वीकार कर ली कि सामान्य और विशेष दोनों प्रकारसे अस्तित्व सिद्ध है। दोनो प्रकारके आस्तित्व सिद्ध होने आस्तित्व सामान्यसे जीव है । आस्तत्व विशेषसे जीव नहीं है यह अर्थ है हो जाता है और सवथा आस्तित्वकी सिद्धिके लिये जो 'स्यादस्त्यैव जीव यहाँपर अवधारणार्थक एव || शब्दका प्रयोग है वह निरर्थक ठहर जाता है क्योंकि आस्तित्वैकांतवादीके मतकी अपेक्षा सर्वथा आस्तत्वके स्वीकार कर लेनेपर यदि नास्तित्वका निरोध हो जाय तब तो अवधारण सफल माना जाय परंतु यहां पर तो नास्तित्व सिद्ध हो चुका इसलिये अवधारणार्थक एवकार व्यर्थ ही है। तथा यदि एवकारका प्रयोग न किया जायगा तब अन्यके आस्तित्वकी तो जीवमें निवृत्ति होगी नहीं इसलिये पुद्गल आदि के आस्तित्वसे भी जीवका अस्तित्व कहा जायगा अतः एकांतवादीको अवधारण अवश्य मानना
पडेगा । इसप्रकार जब अवधारणार्थक एवकार मानलिया जायगा तब ऊपर जो दोष दिया गया है IPL वह फिर लागू हो जायगा अर्थात् समस्त आस्तित्वसे यदि जीवकी व्याप्ति मानी जायगी तो पुद्गल | आदिके आस्तित्वसे भी उसकी व्याप्ति होगी इसलिए अस्तित्वैकांतवादीके अनुसार सर्वथा आस्तित्व
|| पदार्थ सिद्ध नहीं हो सकता। और भी यह बात है कि| जो अस्तित्व है वह स्वद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल और स्वभावकी अपेक्षा होता है परद्रव्य परक्षेत्र पर
| काल और परभावकी अपेक्षा नहीं क्योंकि परद्रव्य क्षेत्र आदि वहां अप्रस्तुत हैं विवक्षित नहीं। जिस
HAREKALKAS
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