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________________ परा पापा RRIERSPEASAEEMBER बीज-कारणके अभावमें उसके आश्रय रहनेवाला कोई कार्य सिद्ध नहीं होता । उत्पाद और व्यय की कारण स्थिति है जब स्थितिका ही अभाव हो जायगा तब उत्पाद और व्यय भी न सिद्ध हो सकेंगे। इसरीतिसे स्थितिके अभावमें उत्पाद और व्यय दोनोंका भी अभाव हो जायगा क्योंकि इनका वाचक ||६| कोई शब्द. ही न होगा इसलिए उत्पाद और विनाशकी रक्षाकेलिए स्थिति पदार्थ मानना. अत्यावश्यक || है इसरीतिसे उत्पद्यमानता (उत्पाद) उत्पन्नता (स्थिति) और विनाश ये तीनों ही अवस्था स्वीकार करनी होंगी इसतरह जिसप्रकार एक ही उत्पाद सजातीय विजातीय उत्पादोंकी अपेक्षा अनंत स्वरूप है उसीप्रकार एक भी आत्मा द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयके विषयभूत सामान्य विशेषरूप अनंत शक्तिकी अपेक्षासे आर्पित स्थिति उत्पाद और विनाशरूप अनंत शक्तिस्वरूप होनेसे अनेकरूप है । तथा और भी यह बात है ___ अन्वयव्यतिरेकात्मकत्वाञ्च ॥ १३॥ . जिसप्रकार एक ही घट सत्त्व अचतनत्वरूप अन्वय और नवीनत प्राचीनत्वरूप व्यतिरेक इस. प्रकार अन्वय व्यतिरेकरूप स्वरूपकी अपेक्षा अनेक है अर्थात् एक ही घट सत् अचेतन नवीन और प्राचीन आदि अनेकस्वरूप कहा जाता है उसीप्रकार एक भी आत्मा अन्वय और व्यतिरेकस्वरूपकी अपेक्षा अनेक प्रकारकी है। कौन धर्म अन्वयस्वरूप कहे जाते हैं और कौन धर्म व्यतिरेकस्वरूप कहे जाते हैं.? इसका खुलासा इसप्रकार है बुद्धि (ज्ञान) आभिधान (शब्द) और अनुकूल प्रवृचिरूप लिंगोंसे जिनका अनुमान होता है ||११५३ का अर्थात् जिनका ज्ञान होता है जिनकी संज्ञा है और जिनमें ठीक ठीक प्रवृत्ति होती है तथा जिनका AGAR- SE-%A4%Boss
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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