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________________ अमा || सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में जो कुछ अधिक दो सांगरकी उत्कृष्ट आयु है वही सानत्कुमार और माहेंद्र में बापा | जघन्य आयु है । इसीतरह आगे भी समझ लेना चाहिये। ११३ जो पर अर्थात् अगले देशमें रहै उसका नाम परतः है 'परतः परत:' यहां पर वीप्सा अर्थमें द्वित्व है। पूर्व पूर्व यहां पर भी वीप्सा अर्थमें द्वित्व है। खुलासा तात्पर्य यह है कि-पहिले पहिले देवोंकी जो | उत्कृष्ट स्थिति है वह आगे आगेके देवोंकी जघन्य है । शंका-पहिले पहिले स्वर्गोंके देवोंकी उत्कृष्ट | || स्थिति जो आगे आगे स्वगोंके देवोंकी जघन्य मानी गई है वह सामान्य रूपसे उतनी ही मानी गई है। ॐ अथवा साधिक है वार्तिककार इस विषयका खुलासा करते हैं । अधिकग्रहणानुवृत्तः सातिरेकसंप्रत्ययः॥१॥ _ 'अपरा पल्योपममधिकं इस सूत्रमें अधिक शब्दका उल्लेख किया गया है उसकी अनुचि इस सूत्र | में है इसलिये अधिकविशिष्ट स्थितिका यहां ग्रहण है। खुलासा इस प्रकार है सौधर्म और ऐशान स्वर्गों में जो कुछ अधिक दो सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कह आये हैं वह | | साधिक अर्थात् कुछ अधिकसे और अधिक दो सागर प्रमाण सानत्कुमार माहेंद्र स्वर्गों में देवोंकी जघन्य स्थिति है । सानत्कुमार माहेंद्र स्वर्गों में जो कुछ अधिक सात सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कह आये हैं| all वही कुछ अधिक अर्थात् कुछ अधिकसे अधिक सात सागर प्रमाण ब्रह्म ब्रह्मोचर स्वर्गों में जघन्य स्थिति है। ब्रह्मलोक ब्रह्मोचरस्वर्गों में जो कुछ अधिक दश सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कह आये हैं वही कुछ अधिकसे अधिक दश सागर प्रमाण लांतव कापिष्ठ स्वर्गों में जघन्य स्थिति है इसी प्रकार आगे आगे भी ||११३७ | समझ लेनी चाहिये । शंका-यह साधिकका अधिकार कहां तक है ? उत्तर SUBSHREASRCIRSS BRUAGREEMBASSADORE - नान -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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