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________________ ReckeFIGGESTESCIENCESSISTERY कही जहां सम्यग्दर्शन होता है वह निसर्गज सम्यग्दर्शन कहा जाता है। यदि यहाँपर कोई यह शंका है। करे कि भव्यस्य कालेन निःश्रेयसोपपत्तेरधिगमसम्यक्त्वाभावः॥ ७॥ न विवक्षितापरिज्ञानात् ॥ ८॥ जिस जीवका मोक्षकाल केवली भगवानके ज्ञानके द्वारा निश्चित है, उस कालसे पाहिले. ही यदि | दु अधिगमज सम्यग्दर्शनसे मोक्ष प्राप्त हो जाय तब तो अधिगमज सम्यग्दर्शन मानना फलप्रद है। सो तो ६ हूँ है नहीं। किंतु जो काल निश्चित हो चुका है उसी में जाकर मोक्षकी प्राप्ति होती है और वहांपर निस- हूँ। है गंज सम्यग्दर्शन ही मोक्षकी प्राप्तिमें कारण होता है अर्थात् यदि नियत कालमें ही मोक्षकी प्राप्ति होती है। है है तब उसी समय आत्मामें सम्यग्दर्शन उत्पन्न होगा जब कि मोक्षगमन काल निकट होगा इसलिये है। निसर्गज सम्यग्दर्शनकी सिद्धि होती है यदि अधिगमज सम्यग्दर्शन ही कारण माना जाय तो उपदेश है। द्वारा सम्यग्दर्शन प्राप्त कराकर किसी जीवको नियत कालसे पहले भी मोक्ष प्राप्त कराई जा सकती है। वह तो होती नहीं इसलिये जब काल लब्धिसे ही भव्यको मोक्षकी प्राप्ति होती है तब अधिगमज सम्य. ग्दर्शनके माननेकी कोई आवश्यकता नहीं ? सो ठीक नहीं। हमें जो कहना इष्ट है शंका करनेवालेने ६ उसपर ध्यान ही नहीं दिया। हमें यह कहना इष्ट है कि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन टू तीनोंसे मोक्षकी प्राप्ति होती है तथा तीनोंमें सम्यग्दर्शनकी उत्पचि कैसे होती है ? यह वात बतलानेके है है लिये 'वह सम्यग्दर्शन निसर्ग-स्वभाव और अधिगम-उपदेश आदिसे होता है' यह कहा गया है यदि है ज्ञानचारित्रके विना केवल निसर्गजसम्यग्दर्शनसे वा केवल अधिगमजसम्यग्दर्शनसे मोक्षकी प्राप्ति इष्ट । होती तब तो 'जब भव्यको काललब्धिके ही द्वारा मोक्ष प्राप्त हो जायगी तब अधिगमज सम्यग्दर्शन PROIN
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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