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________________ अध्याय रा० ११३३ ४ सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। शतार और सहस्रार युगलमें कुछ आधिक अठारह सागरप्रमाण स्थिति है। आनत प्राणत युगलमें वीस सागर प्रमाण और आरण अच्युत युगलमें बाईस सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। शंका 'अधिक' इस आधिकारका सम्बंध सहस्रारस्वर्ग पर्यत है यह ऊपर कहा जाचुका है। विशेषणार्थ | 'तु'शब्द भी यही बात द्योतन करता है । इसरीतिसे जो बात ऊपर कह दी गई है उसी बातकोतुशब्दसे घोतित करना पिष्टपेषण होनेसे अयुक्त है अतएव सूत्रमें जो 'तु' शब्द है वह निरर्थक है ? सो ठीक नहीं। ऊपर जो यह बात कही गई है कि आधिक शब्दका आधिकार सहस्रार पर्यंत ही समझना चाहिये। वह इसी तुशब्द के उल्लेखसे सिद्ध होनेके कारण लिखी गई है । यदि तुशब्दका उल्लेख नहीं रहता तो वह बात सिद्ध नहीं हो सकती थी इसलिये सूत्रमें जो तुशब्द का प्रयोग है वह निरर्थक नहीं ॥३१॥ सोलह स्वर्गपर्यंतके देवोंकी उत्कृष्ट स्थितिका वर्णन कर दिया गया अब उनके कारके कल्पातीत | विमानवासी देवोंकी स्थितिका सूत्रकार वर्णन करते हैं आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ ३२॥ आरण और अच्युत युगलसे ऊपर अवेयकोंमें, नव अनुदिमेिं, विजय आदिक चार विमानोंमें | IS और सर्वार्थसिद्धि विमानमें एक एक सागर बढती आयु है अर्थात् प्रथम वेयकमें तेईस सागर, दूमरेमें चौवीस सागर, इत्यादि रूपसे आगे भी समझ लेनी चाहिये। आधिकारादधिकसंबंधः॥१॥ सौधर्मेशानयोरित्यादि सूत्रमें जो आधिक शब्दका उल्लेख है उसका बरावर आधिकार चला रहा १४३ HOUGREENERBOUT-SGARHMIRESS BREALIBABA-RESULSISABASE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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