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अधिगमः' यह उसकी व्युत्पत्ति है। 'निसर्गात् और अधिगमात्' ये दोनों पद पंचम्यंत हैं और वहां पर 9 कारण अर्थमें पंचमी विभक्तिका निर्देश है । सूत्र सब ही साध्याहार होते हैं। यदि उनमें किसी शब्दकी कमी 8 मार है होती है तो या तो पूर्व सूत्रोंसे उसकी अनुवृत्चि कर ली जाती है अथवा ऊपरसे जोड लिया जाता है । इस % हूँ सूत्रमें कारण अर्थमें पंचमी विभक्तिका निर्देश माना है और वह कारण उत्पचिरूप क्रियाका इष्ट है इस है लिये यहां 'उत्पद्यते' क्रिया ऊपरसे जोड ली गई है । इस रीतिसे कारण अर्थमें पंचमी मानकर और ते है 'उत्पद्यते' इस क्रियाको सूत्रमें ऊपरले जोड कर वह सम्यग्दर्शन निसर्ग-स्वभाव और अधिगम परोप
देशजन्य ज्ञान इन दो कारणों से उत्पन्न होता है यह तन्निसर्गादधिगमाद्वा' इस सूत्रका स्पष्ट अर्थ है । - यहां पर किसीकी शंका है कि
सम्यग्दर्शनद्वविध्यकल्पनानुपपत्तिः, अनुपलब्धतत्त्वस्य श्रद्धानाभावात् रसायनवत् ॥१॥
जिस रसायन-औषधका फल अत्यंत परोक्ष है । इसके खानेसे मुझे क्या फल मिलेगा ? रोगी हूँ अपने आप उसे जान नहीं सकता । उस रसायन पर जिसतरह उसे विश्वास नहीं होता उसीतरह जिसको हूँ जीव अजीव आदि पदार्थों के स्वरूपकी जरा भी जानकारी नहीं, वह भी विना किप्तीके समझाये स्वयं है
उनका श्रद्धान नहीं कर सकता इसलिये विना किसीके समझाये जव स्वभावसे ही जीव आदि पदार्थोंका है
श्रद्धान नहीं हो सकता तव उपदेश आदि निमिचके विना स्वभावसे ही होनेवाला निसर्गज सम्यग्दर्शन " सिद्ध नहीं हो सकता इसरीतिसे निसर्गज और अधिगमजके भेदसे जो सम्यग्दर्शन के दो भेद माने हैं यह ठीक नहीं। यदि यहां पर यह उत्तर दिया जाय कि
शूद्रवेदभक्तिवदिति चेन्न वैषम्यात् ॥२॥
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