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________________ PRESEG- 4 अध्याय - भाषा ॥ प्यादे हैं। दूसरी कक्षामें इससे दूने, तीसरी कक्षामें उससे दूने इसप्रकार उत्तरोचर सातवीं कक्षापर्यंत ६ पदातियोंकी संख्या दूनी दूनी है। घोडोंकी सेनाके महत्चरका नाम हरि है। हाथियोंकी सेनाके महत्चरका नाम ऐरावत है । बैलोंकी | सेनाके महचरका नाम दामयस्ति (ष्टि) है । रथोंकी सेनाके महत्चरका मातुलि नाम है। गणिकाओंकी हूँ। सेनाकी महचरिकाका नाम नीलांजना है । एवं गंधर्वोको सेनाके महत्तरकानाम आरिष्टयशस्क है । इन छहों |प्रकारकी सेनाकी संख्या पदाति सेनाकी संख्याके समान समझ लेनी चाहिये। यह जो ऊपर पदाति है। आदिके देवोंकी संख्याका वर्णन किया गया है वह विक्रियाजनित है किंतु स्वाभाविक (असली)देव तो एक एक सेनामें छइसो छइसौ हैं तथा उन स्वाभाविक छहसौ देवोंमें प्रत्येक देवकी छहप्तौ छइसौ ही । देवियां हैं। इन छड्सौ देवियों में प्रत्येक देवी अपने विक्रियाबलसे छह छह देवियोंका रूप धारण करने में समर्थ है एवं प्रत्येक देवीकी आधे आधे पल्यकी आयु है। वायु हरि ऐरावत आदि जो सात सेनाओं के महत्चर कहे गये हैं उनमें भी प्रत्येकी छइसौ छहमो देवियां हैं। और उनमें प्रत्येक देवी अपनी विक्रियोंसे छह छह देवियोंके रूप धारण करने में समर्थ है। IF और हर एक देवीकी आयु आधे आधे पल्यकी है। ___एक पल्यकी आयुके धारक जो ऊपर चौरासी हजार आत्मरक्षक देव कहआये हैं उन देवोंमें| 18 प्रत्येक देवकी दो दोसै देवियां हैं। प्रत्येक देवी अपने विक्रियाबलसे छह छह देवियों के रूप धारण करनेमें समर्थ हैं और हर एककी आयु आधे आधे पल्पकी है। १०५५ इंद्रका बालक नामका एक आभियोग्य देव है । वह एक पल्यकी आयुका धारक है और जंव ARSHDOLMERAPRAMOD - ana-AS-RISRA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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