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विजय वैजयंत जयंत और अपराजित इन चारोंमें जघन्य स्थिति कुछ अधिक वाईस सागरप्र|| माण है । उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरप्रमाण है परंतु सर्वार्थसिदि विमानके रहनेवाले देवोंकी उत्कृष्ट
| और जघन्य दोनों प्रकारको स्थिति तेतीस सागरप्रमाण है तथा सर्वार्थसिद्धि विमानवासी एक देवका | जितना प्रभाव और प्रताप है उतना समस्त विजय आदि विमानवासी देवोंका भी नहीं है इसप्रकार
विजयादिवासी देवोंकी अपेक्षा सर्वार्थसिद्धिवासी देवोंकी स्थिति आदिसे विशेषता प्रतिपादन करनेके| लिए सवार्थासद्धि शब्दका पृथक् उल्लेख किया गया है, तथा सर्वार्थसिद्धिवाला देव एक भवधारण कर || मोक्ष चलाजाता है विजयादिकोंमें उत्पन्न होनेवाला देव दो भवधारण कर मोक्ष जाता है।
गैवेयकादीनां पृथग्गहणं कल्पातीतत्वानापनार्थ ॥४॥ सौधर्म स्वर्गसे आदि लेकर अच्युतपर्यंत बारह कल्प (इंद्र आदिकी कल्पना सिर्फ बारह ही स्वर्गों में || हे ब्रह्मोचर कापिष्ठ शुक्र और सहस्रार स्वर्ग तो ब्रह्म, लांतव, शुक्र और शतार इंद्रके अधीन क्रमसे हैं)
अथवा सोलह वर्ग हैं उनके बाद कल्पातीत हैं इस बातके स्पष्ट करनेकेलिए सौधर्म आदिसे ग्रेवेयकोंका है। जुदा उल्लेख किया गया है।
• नवशब्दस्य वृत्त्यकरणमनुदिशसूचनार्थ ॥५॥ | नव शब्दका ग्रैवेयकके साथ समास किया जासकता था फिर जो उसका अवेयकके साथ समास न || कर जुदा उल्लेख किया गया है उसका तात्पर्य यह है कि नौ अवेयक विमानोंके समान नव अनुदिश | विमान भी हैं इसलिए यहाँपर नव शब्दका पृथग्योग नौ अनुदिश विमानोंके संग्रहार्थ है । यदि यहाँपर ०५१ नव शब्दके पृथग्योगसे नव अनुदिशोंका ग्रहण इष्ट न होता तो फिर नव शब्दका अवेयकके साथ
RECENERBOASABALBAR
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ISEASON RESEASABAD
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