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________________ अध्याय आनंतस्वर्गके साहचर्यसे इंद्रका नाम भी आनत है । अथवा आनत नाम स्वर्गका है उसके साहचर्यसे इंद्रका नाम भी आनत है। प्राणत नाम इंद्रका है। उसके निवासस्थान स्वर्गका नाम भी प्राणत है। प्राणत स्वर्गके साहचर्यसे इंद्रका नाम भी प्राणत है। अथवा प्राणत नाम स्वर्गका है उसके साहचर्यमे 5 इंद्रका नाम भी प्राणत है। आरण नाम इंद्रका है। उसके निवासस्थान स्वर्गका नाम भी आरण है। आरण स्वर्गके संबंधसे इंद्रका नाम भी आरण है । अथवा आरण नाम स्वर्गका है उसके साइचर्यसे इंद्रका भी आरण नाम है । अच्युत नाम इंद्रका है। उसके निवासस्थान स्वर्गका नाम भी अच्युत है। अच्युतस्वर्गके साहचर्य से इंद्रका नाम भी अच्युत है। अथवा अच्युत नाम स्वर्गका है उसके साहचर्यसे इंद्रका नाम भी अच्युत है। ___लोकको 'पुरुषाकार माना गया है । एवं पुरुषके शरीर के मस्तक आदि अवयवोंके समान लोकके अवयवोंकी कल्पना की गई है । इसलिये लोकरूपी पुरुषकी ग्रीवाके स्थानपर रहनेवाले विमानोंका नाम अवेयक है । अवेयक विमानोंके साहचर्य से इंद्रोंका नाम भी ग्रैवेयक है। कल्याणकारी पदार्थोंके विघ्नोंके कारणोंके विजयसे विजय आदि विमान सार्थक संज्ञाके धारक हैं । समस्त प्रयोजनोंकी सिद्धि प्रदान करने के कारण होनेसे संवार्थसिद्धि विमानका भी सार्थक नाम है । इसरूपसे विजय वैजयंत जयंत अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच विमान हैं इन विमानोंके साहचर्यसे इंद्रोंका भी नाम विजय आदिहै । शंका-सर्वार्थसिद्धि शब्दका विजय आदिके साथ द्वंद्व समास न कर जुदा ग्रहण क्यों किया गया? उत्तर सर्वार्थसिद्धस्य पृथग्ग्रहणं स्थित्यादिविशेषप्रतिपत्त्यर्थं ॥३॥ ARTISGARDPRMANARTHAMAA २०१०
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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