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________________ । . मनुष्य लोकमें ज्योतिषी देव सदा गमन करनेवाले हैं ऐसा ऊपर कहा गया है उससे यह वात । || सिद्ध है कि मनुष्य लोकके भीतरके सूर्य चंद्रमा आदि ज्योतिषीगमन करनेवाले और उससे वाहिरके द्वीप | और समुद्रोंमें रहनेवाले सर्वथा स्थिर हैं । इसरीतिसे मनुष्य लोकसे वाहिरके सूर्य चंद्रमा आदिके जब हूँ| स्थिरता स्वयंसिद्ध है तब उनकी स्थिरता दिखानेकेलिए 'वहिरवस्थिताः' इस सूत्रका प्रतिपादन निरर्थक है है ? सो ठीक नहीं। मनुष्य लोकसे बाहिर सूर्य चंद्रमा आदि ज्योतिषियोंकी सचा और स्थिरता दोनों ही असिद्ध हैं। कोई भी प्रमाण नहीं जिससे मनुष्य लोकके वाहिर उनकी सचा और स्थिरता सिद्ध हो सके। यदि वहिरवस्थिताः' यह सूत्र नहीं कहा जायगा तो. यही समझा जायगा कि मनुष्य लोकमें ही सूर्य चंद्रमा आदिक हैं और वे सर्वदा गमनशील हैं अन्यत्र नहीं इसलिए मनुष्य लोकसे वाहिर सूर्य 15 चद्रमा आदिकी सचा और स्थिरता सिद्ध करनेकेलिए “वहिरवस्थिताः" इस सूत्रका प्रतिपादन निर- 31 दू र्थक नहीं ॥१५॥ . — भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्क इन तीन निकायोंका वर्णन कर दिया गया अब चौथी निकायकी सामान्य और विशेष संज्ञाओंके कहनेकेलिए सूत्र कहते हैं . वैमानिकाः॥१६॥ जो देव विमानों में रहें वे वैमानिक कहे जाते हैं। सब विमान चौरासी लाख सचानवे हजार तेईस का हैं और एक एक विमान संख्यात असंख्यात योजनोंके विस्तारवाले हैं। . वैमानिकग्रहणमधिकारार्थ ॥१॥ ज्योतिष्क निकायके ऊपर जिन देवोंका उल्लेख है वे वैमानिक ही समझे जाय अन्य देव न समझे AGREE HOURSISTAASAN рьлерея
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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