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________________ EBRURESOURCULUMPERATUREGRECReso द्रव्यगुण और कर्ममें है" इस वचनसे अर्थ शब्द द्रव्य गुण और कर्मका प्रतिपादन करता है। कहीं पर है अर्थ शब्दका अर्थ'प्रयोजन है जिसतरह "किमर्थमिहागमनं भवतः किं प्रयोजनमिति” अर्थात् किस अर्थ-प्रयोजनसे आपका इहां आना हुआ ? कहीं पर अर्थ शब्दका धन भी अर्थ है जिसतरह 'अर्थवानयं, ( देवदचो धनवानिति' अर्थात् देवदर, अर्थ-धनवाला है । कहीं पर अर्थ शब्दका अर्थ वाच्य-अर्थ ही है जिसतरह 'शब्दार्थसंबंध इति' अर्थात् शब्द और अर्थका संबंध । इसप्रकार अर्थ शब्दके अनेक अर्थ ६ हूँ रहने पर यह संदेह होगा कि किस अर्थका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है ? इसलिये तत्व शब्दका उल्लेख सूत्रमें हूँ है किया गया है अर्थात् तस्वरूप अर्थका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । यदि कदाचित् यह कहा जाय कि सर्वानुग्रहाददोष इति चेन्नासदर्थविषयत्वात् ॥२०॥ सभी प्रकारके अर्थोंके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन माननेमें कोई दोष नहीं क्योंकि सम्यग्दर्शनको , मोक्षका कारण माना है यदि सभी प्रकारके अर्थका श्रद्धान सम्यग्दर्शन मान लिया जायगा तो सभी मोक्षके पात्र हो जायगें। इस रीतिसे सब पर उपकार होगा तथा आपका यह द्वेष भी नहीं कि सभी लोग मोक्षके पात्र न बनें किंतु सभी लोग मोक्ष प्राप्त करें आपकी यह भावना है इसलिये सूत्रमें तत्व छ शब्द न रहनेपर 'सभी प्रकारके अर्थों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन माना जायगा' यह जो ऊपर दोष दिया हूँ गया है वह मिथ्या है । सो नहीं। 'सब लोग मोक्षके पात्र न बनें' यह कोई हमारा द्वेष नहीं किंतु यदि * सभी प्रकारके अर्थोंका श्रद्धान सम्यग्दर्शन माना जायगा तो जो पदार्थ असत्-मिथ्या हैं उनका भी है श्रद्धान सम्यग्दर्शन कहा जायगा तथा वह श्रद्धान मोक्षका कारण न हो सकेगा संसारका ही कारण है ६ होगा क्योंकि 'असत् पदार्थोंका श्रद्धान संसारका कारण है यह सिद्धान्त है' इसलिये सब जीव मोक्ष ERISPERIORISRORISTRISTRISTISTORISTOTRSANE ।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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