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________________ परा मध्वाच SHASHTRANSAS PUPSSSRPRESEAE - उत्तरदिशाके स्वामी सुपर्णकुमारोंके स्वामी वेणुधारी इंद्रके चौंतीस लाख भवन हैं सामानिक आदि देवोंका परिवार घरण इंद्रके समान है। ___विद्युत्कुमार अग्निकुमार स्तनितकुमार उदधिकुमार द्वीपकुमार और दिक्कुमार इन छह प्रकारके भवनवासी देवोंके छिहचर लाख भवन हैं । दक्षिणदिशाकी ओरके जो हरिसिंह अग्निशिख सुघोष जलकांत पूर्णभद्र और अमितगति ये छह इंद्र हैं उनमें हरएकके चालीस चालीस लाख भवन हैं तथा उचर दिशाकी ओरके जो हरिकांत अग्निमाणव महाघोष जलप्रभ वशिष्ट और अमितवाहन ये छह इंद्र हैं उनमें प्रत्येकके छत्तीस छत्चीस लाख भवन हैं। वातकुमार नामके भवनवासियों के छियानबे लाख भवन है। उनमें दक्षिण दिशाके तापी वातकुमारोंके इंद्र वैलंबके पचास लाख भवन हैं और उचरदिशाके स्वामी सुपर्णकुमारोंके इंद्र प्रभंजनके छियालीस लाख भवन हैं । विद्युत्कुमार आदि सातो प्रकारके भवनवासियों का सामानिक देव आदि परिवार कुल धरणेंद्रके समान है। इसप्रकार ये भवनवासियोंके मिलकर कुल भवन सात करोड बहत्तर || लाख हैं ॥१०॥ ____ इसप्रकार भवनवासी देवोंका कुछ स्वरूप वर्णन कर दिया गया अब दूसरा निकाय व्यंतर है उसकी | सामान्य और विशेष संज्ञाओं के निश्चयार्थ सूत्रकार सूत्र कहते हैं व्यंतराः किन्नरकिंपुरुषमहोरगगंधर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ॥११॥ हा व्यंतरदेव, किन्नर किंपुरुष महोरग गंधर्व यक्ष राक्षस भूत और पिशाच. इसरीतिसे आठपकारके हैं। विविधदेशांतरनिवासित्वाद् व्यंतराः॥१॥ - BH - ARORECASICA O PARDA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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