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जो पाषाणादि मूर्ति पूजते हैं वे अतीव वेद विरोधी हैं. [ सत्या० पृ० ३१४ ]
[३] "मूर्तिपूजाका सन्मान 1"
नहीं २ मूर्ति पूजा सीढ़ी नहीं किंतु एक बड़ी खाई है जिसमें गिरकर चकनाचूर हो जाता है पुनः उस खाईसे निकल नहीं सकता किंतु उसीमें मर जाता है [ सत्या० पृ० ३११ ] [४]" मंदिरमें देव पूजा करनेवाले ब्राह्मणोंका सम्मान " !
पाषाणादिकी मूर्ति बना उसके आगे नैवेद्य घर घंटानाद टंटं पूंपूं और शंख बजा कोलाहल कर अंगूठा दिखला अर्थात् " त्वमंगुष्टं गृहाण भोजनं पदार्थं वा अहं ग्रहीष्यामि " जैसे कोई किसीको छले वा चिड़ावे कि तूं घंटा ले और अंगूठा दिखलावे उसके आगेसे सब पदार्थ ले आप भोगे वैसे ही लीला इन पूजारियों पूजा नाम सत्कर्मके शत्रुओंकी है। मूढों को चटक मटक चलक झलक मूर्तियोंको बना ठना आप ठगोंके तुल्य बनठनके बिचारे निर्बुद्धि अनाथोंका माल मारके मौज करते हैं । जो कोई धर्मिराजा होता तो इन पाषाण प्रियों ( पत्थरके प्यारयों) को पत्थर तोड़ने बनाने और घर चनने आदि कामों में लगाके खाने पीनेको देता [ सत्या • पृ० ३१५]
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[५] " ब्राह्मणका सन्मान !,"
( ब्राह्मणोंकी तर्फसे स्वयं प्रश्नकर्त्ता बनकर उनके
विषयमें इस प्रकार लिखते हैं . )
प्रश्न -- तो हम कौन हैं ?
उत्तर - तुम पोप हो । प्रश्न - पोप किसको कहते हैं ?