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________________ ५७ कुंतिका गर्भवती होना भी पुराणोंमे असंभव लिखा है ऐसी २ चातोंको आंखके ये गांठके पूरे लोग मानकर भ्रमजालमें गिरते हैं।" सज्जनो ! हमारे पूज्य महात्मा स्वामी दयानंद सरस्वतीजी, . उकलेखसे सृष्टिक्रमके विलद्ध पातको लिखने और माननेवालों को जंगली मूर्व आंखके अंधे और गांठके पूरे भ्रमजालमें गिरे हुए बतलाते हैं, परंतु ईश्वरने मां बापके विनाही हजारों जवान सी मनुष्य पैदा कर दिये ! एवं भेड़, बकरी और गधे आदि पशुभी पैदा कर दिये ! इस प्रकार का सर्वथा सृष्टिक्रम विरूद्ध कथन करनेवाले, सरस्वती महोदय को किस श्रेणीमें समझना चाहिये ! यह हमारा पाठकोंसे विनयपूर्वक प्रश्न है! हममें इतना साहस नहीं कि प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे विरूद्ध वातोंके कथन करनेवाले स्वामीजीको उनके स्वभावके अनुसार उनको जंगली खका अंधा अथवा गांठका पूरा इत्यादि कह सकें ! परंतु शोक तो इतना ही है कि, स्वामीजी ने स्वयं तो सृष्टिक्रमसे विरुद्ध बातों को लिखने में संकोच नहीं किया ! और ईसाई गतके कथनको जंगलियोंका कथन बतलाया है !! अस्तु ! स्वामीजी के बतलाए हुए सृष्टि संबंधि सूक्ष्म तस्वसे तो हमारे पाठक परिचित हो गए हैं ! स्वामीजी के • मृष्टि प्रकरणके विषयमें हमें बहुत कुछ कहना है ! परंतु कही अन्यत्र कहेंगे। " द्रव्य पर्याय और स्वामी दयानंद " स्वा. द.-"जो जैनी लोग सृष्टिको अनादि अनंत मानते और द्रव्य पर्यायोंको भी अनादि अनंत मानते हैं और प्रतिगुण प्रतिदेशमें पर्यायों और प्रतिवस्तुमें भी अनंत पर्यायको
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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