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________________ N ५६. कि उन्होंने इस प्रकारकी असंभव गप्प क्यों मारी? ईश्वरके पास यदि विना माता पिताके सहस्रों जवान मनुप्य पैदा करनेका कोई लायसन्स है तो, वो अब किसने खोस लिया ? अब यदि एक आधा ही पैदा कर देवे तो, विचारे स्वामी दयानंद सरस्वतीके सिरपर तो करख रह जावें ! यदि कहा जावे कि, ईश्वर प्रथम तो उत्पन्न करता है अब नहीं ! तो इसके उत्तरमें कह सकते हैं कि, प्रथम करता है इसमें ही क्या प्रमाण ? अस्तु ! स्वामीजी, हमारे श्रद्धेय हैं ! वे बड़े योगिराज थे ! उनको ईश्वरीय ज्ञान था ! ईश्वरने अन्य ऋपियों की तरह उनके निर्मल हृदयमें सत्य विद्याके भंडार वेदोंका प्रकाश किया था ! इसलिए उनकी गप्पको भी हमें निर्धान्त ही मानना चाहिये ! परंतु शोक कि, हम इतना स्वीकार करने में भी विवश हैं ! क्योंकि, स्वामीजी महाराज कहते हैं । " ऐसी ऐसी (सृष्टिक्रमसे विरुद्ध) वातोंको आंखके अंधे गांठ के पूरे लोग मानकर भ्रमजालमें गिरते हैं " देखो सत्यार्थप्रकाश ( पृष्ठ ४९० ) में ईसाई मतका खंडन करते हुए स्वामीजी फरमाते हैं---" इन बातोंको कोई विद्वान् नहीं मान सकता कि जो प्रत्यक्षादि प्रमाण और सृष्टि क्रमसे विरूद्ध हैं इन बातोंका मानना मूर्ख मनुष्य जंगलियोंका काम है सभ्य विद्वानोंका नहीं भला जो परमेश्वर. का नियम है उसको कोई तोड़ सकता है ? जो परमेश्वर भी नियमको उलटा पलटा करे तो उसकी आज्ञाको कोई न.माने और वह भी सर्वज्ञ और निर्मम है ऐसे तो जिस २ कुमारिका. के गर्भ रह जाय तव सब कोई ऐसे कह सकते हैं कि, इसमें गर्भका रहना ईश्वरकी ओरसे और झूठ मूठ कहदे कि परमेश्वर के इतने मुझको स्वप्नमें कह दिया कि यह. गर्भ परमात्माकी ओरसे है जैसा यह असंभव प्रपंच रचा है वैसा ही सूर्यसे
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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