________________
४७
स्वामीजीके निश्चयके अनुसार हम थोड़े समय के लिये यही मान लेते हैं कि, जैनाचार्योंको भूगोल खगोल विद्याका ज्ञान नहीं था ! वे बिचारे कुछ भी पढ़े लिखे नहीं थे ! इसीलिये उन्होने असंभव गपौड़े लिख मारे ! परंतु " स्वामीजी " इन -सब दूषणोंसे मुक्त थे ! अतः हम उन्हीकी लिखी हुई पुस्त - कोंसे भूगोल खगोलके समझनेकी जिज्ञासा करते हैं ! परंतु शोक है कि, उनके रेल तारवाले वेदोंके पोथों को भी कई दफा उलटा पुलटा कर देखा, मगर भूगोल खगोलके विषय में तो कुछ भी लिखा न पाया ! जैन ग्रंथोंमें वर्णन किये हुये भूगोल खगोलको पौड़ा बतलानेवाले स्वामीजी महाराज, यदि अपने सच्चे माने हुए भूगोल खगोलके उल्लेखसे अपने किये ऋग् अथवा यजुर्वेद भाष्यके पांच सात पृष्ठोंको रंग जाते तो लोगों को भी बहुत लाभ होता ! और हमको भी स्वामीजी और जैनोंके भूगोल खगोलके विषयमें विचार करके सत्यासत्य के निर्णय करनेका समय मिलता ! परंतु खेद है कि, स्वामी महोदय ने स्वयं इस विषय में कुछ निर्णय न करके केवल जैनके आचार्योंको मूर्ख कहने में ही अपनी बुद्धिमत्ताको चरितार्थ किया 1
पाठक महोदय 1 क्षमा कीजिए ! हम स्वामजिकि उन अंघ भक्तोमेंसे नहीं हैं, जोकि उनकी निर्मल कीर्तिको कलंकित करने के लिए महर्षि पदको हाथमें लिए उनके पीछे भाग रहे हैं। सज्जनो ! सृष्टिके परिमाण की इयत्ता मनुष्य बुद्धिसे बाहिर है | मनुष्य अपने परिमित बुद्धि वैभवसे जिस सिद्धांतको आज स्थिर करता है, कल उसीके विरुद्ध शतशः प्रमाणों के उपलब्ध होने से उसीको वह अस्थिर एवं असंगत मानने लगता है । जिस नवीन सायन्स के हम लोग भक्त बन रहे हैं वह, आज जिस सिद्धांत को स्थिर करता है कल उसीको खंडन :