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________________ अंगुली के असंख्य भाग (अनुमान नैयायिकोंके माने हुए व्यणुक) जितना और यदि बड़े से बड़ा होतो तीन कोसके विस्तार जितना हो सकता है, उसके मध्य परिमाणका कुछ नियम नहीं। चाहे एक तिल जितना हो, चाहे चणे जितना हो, चाहे अंगुल परिमाणका हो, चाहे हाथ भरका हो। तीन इंद्रियवाले जीव कितने हैं इसकी संख्या तो न कोइ कर सका और न कर सकेगा | क्या "स्वामीजी" इनकी इयत्ता बतला सकेंगे ? तीन इंद्रियवाले जीव कौनसे हैं ? इसमें च्यूटी, जूं, खटमल आदिका निदर्शन मात्र जैन दर्शनमें बतला दिया गया है, तीन इंद्रियवाले यावत् जीव हैं उनमेंसे यदि कोइ बड़ेसे बड़ा हो तो इतने प्रमाण तकका हो सकता है, इस कथनका आशय न मालूम "स्वामीजी ने यह कैसे निकाल लिया कि, अडतालीस कोसकी जूं जैनियों के शरीरमें पड़ती होगी ! इसी तरह चार कोसका वछूि इत्यादि लेख भी "स्वामीजी" ने कुछ समझ कर लिखा हो ऐसा प्रतीत नहीं होता! क्योंक, चार कोसका विछू होता है ऐसाउल्लेख जैन ग्रंथों में देखने में नहीं आता ! जैन ग्रंथोंमें तो केवल इतना उल्लेख पाया जाता है कि, चार इंद्रियवाले जीवोंमेसे यदि कोई बड़ेसे बड़ा जंतु हो तो इतना हो सकता है. एक ही जातिके जीवोंमे न्यूनाधिक्य प्रत्यक्ष देखनेमें आता है ! बकरी और हस्तीके शरीरमें कितना अंतर है ? यह सभके प्रत्यक्ष है, परंतु पांच इंद्रियवाले जीवोंमे इन दोनोंकी ही समान गणना है ! एवं बिल्ली और सिंह, तथा चिड़ी और बाज इत्यादि अनेक जीवोंमें प्रत्यक्ष महान् अंतर देखने पर भी इनका ग्रहण पंचेंद्रियमें किया जाता है. यदि कोई कहे कि-चूहा, बिल्ली, चिड़ी, कबूतर, बकरी आदि पांच इंद्रियवाले जीव हैं, इनका शरीर दो इंच, और अधिकसे अधिक
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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