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________________ ४० उनका यहांपर उल्लेख करना कुछ आवश्यक नहीं है । समय आनेपर कहीं अन्यत्र किया जावेगा उनपर विचार करके सत्यासत्यका निर्णय करना मध्यस्थवर्गका कर्त्तव्य है. aसको जीवमानन में तो किसीको भी विवाद नहीं । पृथिव्यादि पांच कायके जीव एकेंद्रिय कहे जाते हैं. अर्थात् स्पर्श आदि पांच इंद्रियोंमेंसे इनमें एक स्पर्श इंद्रिय ही होती है ! इनके शरीर प्रमाण और आयुमानका जैन ग्रंथों में इसप्रकार वर्णन किया है। U पृथिव्यादि चार कायके शरीरका प्रमाण अंगुलका असंख्य भाग अर्थात् बहुत सूक्ष्म है. पृथिव कायके जीवका आयु न्यूनसे न्यून अंतर्मुहूर्त ( दो घड़ीसे कुछ थोड़ा काल ) और अधिकसे अधिक २२ सहस्र वर्षका हो सकता है । एवं ज़लकायके जीवका आयुमान न्यूनसे न्यून अंतर्मुहूर्त्त और अधिक से अधिक सात हजार वर्षका हो सकता है । तथा अभि कायके जीवका आयु न्यूनसे न्यून जल जितना और अधिकसे अधिक तीन दिनका । वायुकायके जीवका आयु प्रमाण भी कमसे कम अंतर्मुहूर्त्तका और अधिकसे अधिक तीन हजार वर्षका हो सकता है । वनस्पतिके साधारण और प्रत्येक ये दो भेद हैं, . साधारण में कंदमूलादिकी गणना है और प्रत्येकसे वृक्षादि ग्रहण किये जाते हैं । साधारण वनस्पतिका शरीरमान पृथिव्यादिके समान है और आयुका प्रमाण अंतर्मुहूर्त मात्र है । प्रत्येक वनस्पतिका शरीरप्रमाण थोडेसे. थोड़ा पृथिव्यादि जितना और अधिक से अधिक एक सहस्र योजन तकका हो सकता है। आयु इसका न्यूनसे न्यून अंतर्मुहूर्त और अधिकसे अधिक दश.. सहस्र वर्षका हो सकता है । मध्यकालका कुछ नियम नहीं, चाहे एक दिनका चाहे दश वर्षका हो. सकायके द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय और पंचेंद्रिय ये चार भेद हैं. जिनके स्पर्श और रसना ये दो इंद्रिय होवें वे द्वींद्रिय कहाते •
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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