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समालोचक- स्वामीजी महाराजका यह लेख ऐसा है, जैसे कोई कहे कि, जिस कुरानशरीफको हमारे महमदी भाई खुदाका इल्हाम कहते हैं, उसीको स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ईश्वरीय ज्ञान (वेद) मानते हैं. इसीलिये ये दोनों एक हैं।। "स्वामीजी ने जैन और बौद्धको एक बतलानेमें किसी भी युक्ति या प्रमाणसे काम नहीं लिया !! " सत्यार्थ प्रकाश के (पृष्ठ ४०७)में जो इतिहास तिमिर नाशकका पाठ " स्वामीजी ने जैन बौद्धकी एकतामें प्रमाण रूपसे उद्धृत किया है वह उनकी आशाको सफल होने नहीं देता ! यद्यपि जैन और बौद्धकी एकतामें कोई दृढतर युक्ति और प्रमाणके उपलब्ध न होनेपर भी ( प्रत्युत इसके विरुद्धमें शतशः प्रमाण उपलब्ध होते हैं ! ) केवल इतिहास तिमिर नाशक (जिसका लेख सर्वथा युक्ति सह नहीं) ग्रंथके आधार पर ही इनको एक मानना और बतलाना " स्वामीजी" जैसे निष्पक्ष विद्वानोंके लिये उचित नहीं! तथापि " स्वामीजी" जैसे भद्र पुरुषके लेखको अप्रमाणिक कहना, अपने लिये अयोग्य समझते हुए हम इतिहास तिमिर नाशक ग्रंथके कर्ता, बाबू"शिवप्रसाद" सितारे हिंदके उस पत्रको यहां पर उद्धृत करते हैं, जो कि उन्होंने गुजरांवाला-पंजाबके जैन समाज पर लिखा था। इसके देखनेसे यह बात बखूबी मालम हो जायगी कि, "स्वामीजी" का उल्लेख मध्यस्थ वर्गको किस सीमा तक आदरणीय है !!
[बाबू-"शिवप्रसाद सितारे हिंदका पत्र.] श्री ५ सकल जैन पंचायत गुजरांवालाको शिवप्रसाद का
प्रणाम पहुंचे कृपापत्र पत्रोंसहित पहुंचा.