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" भांड धूर्च निशाचर वतुं महीधरादि टीकाकार हुए हैं उनकी धूर्तता है वेदोंकी नहीं " स्वामीजी महाराजका यह लेख ध्यान से पढ़ने लायक है ! महीधरादि टीकाकारोंको भांड धूर्त और निशाचर बतलानेका " स्वामीजी " ने हेतु दिया है कि, महीधरादि टीकाकारोंने मांस मदिरा तथा अन्य कइएक वीभत्स कार्योंका टल्लेख करके मिथ्या ही वेदोंपर कलंक लगाया है, वेदों में इन बातोंका अर्थात् मांसमदिरा के खानपान तथा अन्य वीभत्स व्यवहारोंका विधान सर्वथा नहीं ! इसलिये वेदपर झूठा कलंक लगानेवाले महीधरादि टीकाकारों को अवश्य भांड धूर्त और निशाचर कहना चाहिये !
प्यारे सभ्य पाठको | वेदोंमें मांस मदिरा आदिका विधान हैं या कि नहीं ? यह विषय बहुत ही विवाद ग्रस्त है ! इसकी मीमांसा करनी असंभव नहीं तो कठिन तो अवश्य ही है ! अस्तु ! इस विषयपर युक्ति पूर्ण विस्तारपूर्वक विचार हम कहीं अन्यत्र करेंगे, इस समय तो महीधरादि आचार्यों के विषयमें जो "स्वामीजी" का लेख है, उसको देखकर हमारे मनमें जो शंकायें उत्पन्न होती हैं उनको लिखते हैं ।
" स्वामीजी " महाराजका " वेदोंमें मांस खाना कहीं नहीं लिखा " यह लेख इस बातको स्पष्ट बतला रहा है किं, वेदों में मांसादिका उल्लेख बतलानेवाले सभी के सभी भांड धूर्च और निशाचर हैं | मालूम होता है कि, इसी लिये उन्होंने " महीधरादि" इसमें आदि शब्द लिखा है ! कदापि - हम "स्वामीनी" की यह बात स्वीकार करें तो हमे आंशा नहीं कि, वेदोंसे संबंध रखनेवाले जितने भी प्राचीन ग्रंथ हैं उनके रचयिता - आचार्य - ऋषिओंमेंसे कोई भी ऐसा निकले कि,