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प्रत्यक्ष कर लिया था ! इसलिए उनके लेखों में प्रमाणोंका अन्वे-- पण काना हमारे लिए आवश्यक नहीं है ! क्योंकि वे ऋषि. थे ! और हम मनुष्य हैं !
मस्तु ! हमारा सभ्य संसारसे साग्रह निवेदन है कि, वह स्वामीदयानन्दसरस्वतीजीके उक्त लेखपर अवश्य ध्यान दे। एक समाजपर अकारण ही इतना भयानक असभ्य आक्षेप करना स्वामीजी के लिए कहांतक शोभास्पद है यह पाठक स्वयं विचारें । हमारे विचारमें तो आर्यसमाजके नेताभोंको उचित्त है कि, वे सत्यार्थप्रकाशमैसे उक्त लेखकोतो अवश्यही निकालडालें। इस प्रकार के आरोपी मिथ्या लेखोंसे स्वामी दयानंद सरस्वतीजीकी प्रतिष्ठा नहीं प्रत्युत उसकी हानिकी ही संभावना है ! अब प्रकाशका जमाना है !! अंधेर सदाके लिए नहीं रहता!!!
सज्जनो | जैनधर्मके संबंधमें स्वामी दयानंद सरस्वतीजीने लो उद्गार निकाले हैं उनका यह नमूना मात्र आपकी सेवामें निवेदन किया गया है । इसपर निष्पक्ष भावसे विचार करना पब आपका कर्तव्य है। क्योंकि निष्पक्ष भाव ही मनुष्य जीवनका सच्चा उद्देश है । जब तक मनुष्यके हृदयसे "मेरा सो सच्चा" निकलकर " सच्चा सो मेरा" इस विचारकी स्थिरता न हो तब तक जीवनके वास्तविक लक्षसे वह कोसों - दूर है। अस्तु ! अब हम इस लेखको मध्यस्थ भावसे अवलोकन करनेके लिए सभ्य पाठकोंसे निवेदन करते हुए अपनी लेखिनीको विराम देते हैं । शिवमंस्तु सर्वजगतः ।
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इति मध्यस्थवाद ग्रन्थमालायाः प्रथमं पुष्पम् ।।