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________________ १-४६ "शंकर स्वामीकी मृत्यु और स्वामीदयानन्द". स्वामीदयानन्दसरस्वतीजी महाराजने, जैनोंके विषय में अन्यान्य बातों का उल्लेख करनेके सिवा एक और बड़ी विचित्र बात लिखि है ! बात क्या है ? जैनोंपर मिथ्या आरोप दिया गया है ! आप लिखते हैं-- [ "जब वेदमतका स्थापन हो चुका और विद्या प्रचार करनेका विचार करते ही थे इतने में दो जैन ऊपरसे कथन मात्र वेदमत और भीतरसे कट्टर जैन अर्थात् कपट मुनि थे । शंकराचार्य उनपर अति प्रसन्न थे उनदोनोंने अवसर पाकर शंकराचार्य को ऐसी विषयुक्त वस्तु खिलाई कि उनकी क्षुधा मंद हो गई पश्चात फोड़े फुन्सी होकर छः महीने, के भीतर ही शरीर छूट गया "] [सत्या. प्र. पू. २७८ ] समालोचक -- स्वामीजी, भगवान् शंकराचार्यकी मृत्युका कारण जैनों को बतलाते हैं । उनका कथन है कि जैनाने विष देकर शंकराचार्यको मार डाला ! मगर इस कथन की 'सत्यंता के, किए उन्होंने किसी प्रमाणका उल्लेख नहीं किया ! एवं स्वामी शंकराचार्यजीके जितने जीवनचरित आजतक उपलब्ध हुए हैं उनमें भी उक्त वर्णन नहीं है और नाही ऐसा कोई ऐतिहासिक ग्रंथ हमारे देखने में आया है कि जिसमें शंकरस्वामीकी मृत्युका कारण जैनों को बतलाया हो ! हमे आश्चर्य है कि, संसारभरके विद्वानोंमें आजतक जो बात किसीकेभी स्मृतिगोचर नही हुई स्वामीजीको उसका पता कैसे मिला ? सज्जनो ! स्वामीजी महाराज परमयोगी थे ! योगाभ्यासके अतुल बलसे उन्हें मतीन्द्रिय ज्ञानकी उपलब्धि हो चुकी थी ! हम जिन बातोंका ज्ञान इन चर्मचक्षुभसे नहीं कर सकते स्वामीजी महाराजने अपनी योगविभूतिसे उनको
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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