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अन्यदर्शनी कुलिंगी अर्थात् जैनमत विरोधी उनका दर्शन भी जैन लोग न करें ॥ २९ ॥ ( समक्षिक) बुद्धिमान लोग विचार लेंगे कि यह कितनी पामरपनकी बात है - इत्यादि [ सत्यार्थ प्रकाश पृष्ठ ४३० ]
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समालोचक- स्वामीजी की इस निष्पक्ष समीक्षा के विषयमें हम अपनी सम्मति प्रगट करें, इससे पूर्व संस्कृत प्राकृतके जाननेवाले पाठक महोदयोंसे हमारा साग्रह निवेदन है कि, वे कृपा करके स्वामीजीके किए हुए उक्त प्राकृत श्लोकके अर्थपर 'जिसके नीचे लंबी लकीर खैंची है प्रथम अवश्य विचार करें !! हमे आशा है कि, उनके विचार करनेसे स्वामीजीके कल्पित सत्य और मध्यस्थ विचारोंके अगाध समुद्र में देरसे डूबी हुई कितनी भद्र आर्यप्रजाको सद्यः ही निकलनेका सौभाग्य प्राप्त होगा !
स्वामीजीका जैनोंके संबंध में इस प्रकार के अहेतुक सर्वथा द्वेष भरे उद्गारोंके निकालनेका क्या हेतु होगा ? यह समझने के लिए हम बहुत असमर्थ हैं । हमें बड़े दुःखसे कहना पड़ता है कि, ऊपर लिखे प्राकृत श्लोक में ऐसा एक भी अक्षर नहीं कि, जिसका " जो जैनमतका विरोधी हो उसका दर्शन भी जैन लोग न करें " यह अर्थ हो सके !
उक्त श्लोकका सीधा सादा निर्विवाद अक्षरार्थ यह है कि, " अतिशय पापरक्त पुरुष, धार्मिक पर्वों में भी पाप करनेसे नहीं चूकते । एवं कितनेक पुण्यशाली धर्मात्मा पुरुष अधार्मिक में भी धर्म कार्योंके करनेसे च्युत नहीं होते "
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अतिशय पापिनो धर्मपर्वस्वपि पापरता एव भवन्ति ।
एवं केपि धन्याः शूद्धधर्मात्पापपर्वस्वपि न चलन्ति " इत्यवचूरिकार ः |