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________________ ७० ] सुवोध जैन पाठमाला-भाग २ ६. कुविय : मोना, चाँदी से भिन्न धातु आदि का,यथा परिमारण (घर का सारा विस्तार) इस प्रकार जो परिमारण किया है, उसके उपरांत अपना करके परिग्रह रखने का पच्चक्खारण (करता हूँ) जावज्जीवाए। एगविहं तिविहेण, न करेमि, मरणसा वयसा कायसा । । अतिचार पाठ ऐसे पाँचवे स्थूल परिग्रह : पाँचवाँ स्थूल परिग्रह परिमारणवत के पच,अइयारा परिमाण व्रत के विषय मे जारिणयव्वा न ममायरियन्वा जो कोई अतिचार लगा तजहा ते पालोउं- हो, तो आलोउ१ खेत्त-वत्त्युप्पमारणाइदकमे : क्षेम वस्तु के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, २. हिरण-सुवगप्पमारणा : हिरण्य-सुवर्ण के परिमाण का इक्कमे अतिक्रमण किया हो, ३. धरण-घरगप्पमारणाइक्कमे : धन-धान्य के परिमारण का अतिक्रमण किया हो, ४. दुपय-चउप्पयप्पमारणा- : दो पद, चौपद के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, ५. कुवियप्पनागाइक्कमे : कुविय धातु के परिमारण का अतिक्रमण किया हो, जो मे देवसिमो अइयारो कयो : इन अतिचारो मे मुझे जो कोई दिन सवधी अतिचार लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुवकडं । इक्कमे तिस्स मते ! .mmm
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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