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________________ सूत्र - विभाग - ६ 'सत्य असुव्रत' व्रत पाठ [ ५३ ४. फल : स्थूल हिसा सम्बन्धी सकल्प-विकल्प से मुक्ति, परस्पर वैर का त्याग, युद्ध - शाति, सह-अस्तित्व, निर्भयता, मित्रता, सहयोग, भवान्तर मे अहिंसक स्वभाव, शुभ दीर्घायुष्य, सर्वत्र जीवन-रक्षा, विष शस्त्र, मत्र आदि का प्रभाव । अन्त मे सदा के लिए अमरत्व, मोक्ष प्राप्ति । ५. कर्त्तव्य : द्रव्य क्षेत्र, काल-भाव के अनुसार मरते हुए प्राणी की रक्षा करना, सापराधी अपराध-वृत्ति त्यागे, शत्रु मित्र बने - इसका पुरुषार्थ करना, अनाक्रामक सर्प, सिंहादि को न मारना, आक्रामक को मारे बिना काम चले - ऐसा विवेक रखना, आश्रितो के अपराध पर तीव्र कषाय न करना, गुरुदण्ड न देना, निर्भय रहना इत्यादि । ६. भावना : अहिंसा की पुष्टि के लिए सूक्तादि पर विचार करना । एकेन्द्रिय की हिंसा भी कब छूटेगी ? यह मनोरथ करना । श्रहिंसा की अपूर्णता पर खेद करना । हिंसा के कारण, दु ख राने पाले मृगालोढादि का तथा अहिंसा के पालक नेमिनाथ, महावीर, मेघमुनि, धर्मरुचि आदि के चरित्र पर ध्यान देना । ܀ पाठ & नववाँ ७. 'सत्य अणुव्रत' व्रत पाठ दूसरा प्रणुव्रत 'थूलाओ मुसावाचामो दूसरा अणुव्रत : स्थूल (अति दुष्ट विचारपूर्वक ) : मृषावाद (झूठ बोलने) से 1
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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