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सुबोध जन पाठमाला-भाग २
निबंध
१. सूक्त : १. एयं खु नागिरगो सारं, 'जं न हिंसइ कं च णं।' ज्ञान का सार यही है कि किसी की हिंसा न करे।'--सूत्र० । २ सब जीव जोना चाहते हैं, कोई मरना नही चाहता, इसलिए प्राणि-वध घोर पाप है। दशवं०। ३. सब जीवो को अपने समान समझो।
२. उद्देश्य : प्राणि-हिंसा को रोकना और प्रारिण-रक्षा करना।
३. स्थान : मोक्ष प्राप्ति के लिए अज्ञान और मिथ्यात्व नष्ट होने के पश्चात् राग-द्वेष (अव्रत, प्रमाद, कषाय) नष्ट होना आवश्यक है। राग-द्वेष का विनाश करना ही सम्यक्चारित्र का उद्देश्य है, इसलिए सम्यक्चारित्र को तीसरा स्थान दिया है।
जब प्राणी को प्रारण, स्त्री, और परिग्रह के प्रति तीव्र राग उत्पन्न होता है, तब वह उनकी प्राप्ति और रक्षा-रूप अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए दूसरे के मूल्यवान प्राण तक लूट लेता है तथा उनकी प्राप्ति व रक्षा मे बाधा और हानि पहुँचाने वालो के प्रति तीव्र द्वेष करके उनके भी प्राण लूट लेता है। यह प्राणो की लूट जहाँ प्राणी के तीव्र राग-द्वेष का पोषण करती है, वहाँ वह दूसरो के लिए भी पूर्ण रूप से महान् दुख उत्पन्न कर देती है। अतः चारित्र मे दोनो के लिए हानिप्रद प्रारिण-हिंसा को रोकना मुख्य है। इसलिए चारित्र मे अहिंसा को सबसे पहला स्थान दिया है। 'हिंसा छोडने योग्य है।' यह शीघ्र ध्यान मे आ जाता है, इसलिए भी हिंसा-विरति को प्रथम स्थान दिया है।