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५०] सुबीघ अन पाठमाला भाग २
उ० : अधिक समय के लिए तो लिया नही जा सकता, क्योकि आगामी जन्म कहाँ किस रूप मे होगा और वहाँ व्रतपालन होगा या नहीं ? यह जान लेना असम्भव है। इसके अतिरिक्त कही भी जन्म से ही व्रत-पालन सम्भव भी नही है । हाँ, जो यावज्जीवन व्रतः लेने में कठिनाई अनुभव करते है (यद्यपि लेना कठिन नही है) या जो पहले कुछ समय व्रत निभा कर फिर यावज्जीवन के लिए व्रत लेना चाहते हैं, वे दस वर्ष, पाँच वर्ष, वर्ष आदि कम समय के लिए व्रत अवश्य ले सकते हैं। यह उत्तर प्रारम्भ के पाठो व्रतो के लिए समझना चाहिए।
प्र० : अहिंसा अणुव्रत का पालन कितने करण योग' से होता है ?
उ० : यद्यपि अहिसा का अणुव्रत दो करण तीन योग से लिया जाता है, पर इसका तीन करण तीन योग से पालन का विवेक रखना चाहिए, अर्थात् कोई निरपराध त्रस जीव को सकल्पपूर्वक मारे, तो. उसका. मन-वचन-काय से अनुमोदन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अन्य भी दो करण तीन योग के व्रतो को तीन करण तीन योग से पालने का ध्यान रखना चाहिए।
प्र० • 'गाढ़ बन्धन' किसे कहते है ?
उ० : जो गले आदि का बन्धन पशु, मनुष्यादि के लिए फाँसी-रूप वन जाय या अग्नि, बाढ आदि का भय उपस्थित होने पर अन्य पुरुष उसे खोल न सके, ऐसे बन्धन को।
प्र० 'बई' के अन्य प्रकार बताइए।
उ.: बूंसा, लात, चावुक, आर आदि से मर्म स्थान अादि पर प्रहार करना।