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प्रस्तावना
स्था० जैन धार्मिक शिक्षण शिविर के पाठ्यक्रम के रूप में सुबोध जैन पाठमाला द्वितीय भाग के सूत्र तथा तत्व-विभाग (पूर्वार्द्ध) प्रोर कथा काव्य विभाग ( उत्तरार्द्ध) का धार्मिक शिक्षण के क्षेत्र में स्वागत करते हुए प्रति हर्ष होता है । प्रथम भाग मे जिन-जिन विषयो का समावेश हुआ है, उसके प्रागे की शृङ्खला इस पाठमाला मे देखने कोती है ।
प्रथम भाग की अपेक्षा इस भाग मे अपेक्षाकृत क्रमानुसार गंभीर विषयों का समावेश हुआ है, फिर भी मुख्य विशेषता यह रही है कि विद्वान् लेखक ने भाषा का मूल रूप सरल, सहजबोधक और भावगम्य ही रखा है । वास्तव में किसी विषय को प्रस्तुत करना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना उसके मर्म और तथ्यों का उद्घाटन करने वाली अभिव्यक्ति का है । श्रभिव्यक्ति का यह प्रकार ही शैली है, जिससे लेखक लोक में श्रद्धा, सम्मान और कीर्ति का पात्र वनता है । परम तपस्वी लालचन्द्रजी म० सा० के प्राज्ञानुवर्ती प० रत्न पारस मुनिजी म० को ज्ञान-साधना और सयम प्राराधना सराहनीय है । २४-२५ वर्ष की इस अल्पायु मे ही कठिन श्रम- साघन से श्रागम प्राराधना कर जो सार-सिद्धि प्रापने प्राप्त की, उसका श्राशिक रूप हम शिविर साहित्य के रूप मे पाकर कृतार्थ हैं ।
स्था० जैन समाज मे विशुद्ध धार्मिक शिक्षण साहित्य की कमी खटपने वाली बात है। दुख तो उस समय अधिक होता है, जब