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सूत्र-विभाग-५. धर्म की आवश्यकता [ २७ ___ यद्यपि हमारे सामने प्रत्यक्ष ही एक दूसरा तिर्यञ्च लोक और कर्मों के फल-रूप जीवो की विभिन्नता तो विद्यमान है ही, फिर भी यदि किन्ही को परलोक के अस्तित्व पर और कर्मवाद पर विश्वास न हो, तो उनके लिए भी स्थूल अहिसा, स्थूल सत्य, स्थूल अचौर्य, स्थूल ब्रह्मचर्य और परिग्रह परिमारण आदि लाभदायी है ही। जिस लोकनीति या राज्यनीति मे इनका समावेश नही होता, वे लोकनीतियाँ तथा राजनीतियाँ इस लोक का सुख नहीं दे पाती। युद्ध, अविश्वास, चोरी, बलात्कार और विषम सामाजिक स्थिति आदि के दुख और भय को दूर करने के लिए लोकनीति और राज्यनीति मे भी स्थूल अहिंसा आदि की आवश्यकता है ही। अत जो प्राणो इहलोकिक सुख चाहते हैं, उनके लिए भी धर्मक्रिया आवश्यक है।
भगवान महावीर ने अपना धर्म मुख्यत मोक्ष-प्राप्ति के लिए ही प्रकट किया और मोक्ष-प्राप्ति के लिए धर्म करने वालो को ही धार्मिक माना है, परन्तु भगवान् ने, जो लोग पारलौकिक या इहलौकिक भौतिक सुख चाहते हैं, उनको भी आह्वान किया है कि प्राणियो । जिस हिंसा आदि अधर्म से आप सुख पाना चाहते हो, वह आपको सुख नही दे सकता । अत आप धर्म को शरण आयो । वह आपको इच्छित सुख देगा ।
मेरा पाठको से आग्रह है कि-'वे अागामी चौथा आवश्यक का अध्ययन तो करे ही, साथ ही धर्म के वास्तविक उद्देश्य को समझकर धर्म को स्वीकार भी करे।'
यदि आप धर्म के वास्तविक उद्देश्य को न समझ सकें, तो भी आप चाहे पारलौकिक या इहलौकिक सुख के लिए सही,