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सुबोध जैन पाठमाला--भार्ग २.
मिथ्यात्व को दूर करता है। सम्यक्चारित्र राग-द्वेष को नष्ट करता है और सम्यक्तप कर्म-बन्धन को तोडता है। कर्म-बन्धन के सर्वथा क्षय से तत्काल आत्मा देह से पृयक हो जाती है और उस दु ख मूल देह से पृथक् होकर अनत और एकांत सुखमय मोक्ष को प्राप्त कर लेती है।
इसीलिए जो भी प्राणी दुख का नाश करके अनत सुख और एकांत सुख चाहते हैं, उनके लिए धर्म आवश्यक है। उसी धर्म का ही आगामी चौथे आवश्यक मे वर्णन किया जायेगा।
मोक्ष अनंत सुखमय कैसे है और एकात सुखमय कैसे है ? - यह बता देना अधिकत. वाणो से परे की बात है। फिर भी जिनेश्वरों ने उपमा आदि के द्वारा उसके सम्बन्ध मे पर्याप्त प्रकाश दिया है। इतना होते हुए भी यदि किन्हीं को मोक्ष-सुख समझ मे न आवे और वें. भौतिक सुख मे ही सुखानुभव करे, तो उनके लिए भी धर्म क्रिया लाभदायी ही है। क्योकि वह ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म को दूर करके ज्ञान-शक्ति देती है। अमाता वेदनीय को दूर करके विषय-सुख और मन-वचन-काया के सुख देती है। मोहनीय को मन्द करके पुरुषत्व देती है। अशुभ आयुष्य दूर करके शुभ और दीर्घ आयुष्य (जीवन) देती है। अशुभ नाम दूर करके श्रेष्ठ गरीर देती है। अशुभ गोत्र दूर करके धनादि-ऐश्वर्य प्रदान करती है और अन्तराय दूर करके ऐश्वर्यादि की प्राप्ति मे आने वाली बाधायो को दूर करती है। धर्मक्रिया के प्रताप से प्रात्मा भावी 'जन्म मे इन्द्र और चक्रवर्ती आदि के सुख प्राप्त करती है। इस प्रकार जो प्राणी भौतिक सुख चाहते हैं, उनके लिए भी धर्म की क्रिया आवश्यक है।