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मुबोध जैन पाठमाला-भाग २
नकट जाकर वदन करने की
ता रहते हुए गुरदेवो
से स्पर्श अवश्य करना चाहिए।
स प्रकार करना चाहिए,
। कष्ट पहुँच जाता है, अतः
। चाहिए। ६ थोड़
क्षमा-याचना करनी चाहिए।
जसे उन्हे गोचरी-पानी सुलभ
मदन करना चाहिए। ३ यदि निकट जाकर वदन प्रयगर न हो, नो साढे तीन हाथ शरीर-प्रमाण दूर करना चाहिए। ४. वदना के साथ अनकलता रहत हुए
दरगा का हाथ और मस्तक से स्पर्श अवश्य कर , वदन या चरण स्पर्श ग्रादि इस प्रकार करना जियग गुमंद्रव का कष्ट न पहुँचे। भ
व का कष्ट न पहँचे। भीड के समय धक्का-मुक्का करता था बदन करने से गुरुदेव को कष्ट पहुँच जा एम ममय बहन शाति और धैर्य रखना चाहिए। भी कर पचत ही तत्काल क्षमा-याचना कर ७. बदना करने के पश्चात् उनके संयम और १
के पश्चात् उनके संयम और शरीरादि सुख दुख का जानकारी करनी चाहिए-जैसे उन्हे गचिरा द या नहीं? ग्राहार-पानी पारणा आदि कि प्रवामादि तपश्चर्या मानि मे हो रही है या
पानी पारणा आदि किया या नहीं' गेर स्वम्य है या नही? ग्रोपधि आदि का सयोग । नहीं ? त्यादि बारें भी पूछनी चाहिए तथा सके, वह म्बय को करना भी चाहिए। याद कार्य न बन सके, तो जो उसके लिए समर्थ हो, उस गुदेव की सेवा की दलाली का लाभ उठाना चाहि ८ दिवम में या किसी भी समय किसी भी प्रकार से गुरुदेव भायातना दुई हो, तो उसकी क्षमायाचना करनी चाहिए। ६ गुरुदेव के मामने मिय्या-टपना
मिय्या-उपचार प्रादि नही करना चाहिए। प्र० तीन वदना बतायो।
उ० 'मन्यएगा वदामि'-यह लघु वन्दना है। क्याकि बाद थोडे है तथा यह केवल हाय जोड़कर तथा मस्तक मकाकर की जाती है। यह वन्दना प्रार
'दना प्राय गुत-दर्शन होते समय की जाती है। तिवावुत्ता मध्यम वाहै, क्योकि
7 में हो रही है या नही ? उनका
वि अादि का सयोग मिला या मा पूछनी चाहिएँ तथा जो स्वय से वन भी चाहिए। यदि स्वय से कोई
' समर्थ हो, उसे सूचित कर
कार से गुरुदेव की
सबसे पहले की जाती है। तिकार