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२० ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ भुकाकर 'निसीहि तक पाठ पढे तथा यदि गुरुदेव हो, तो निसीहि उच्चारण के साथ उनकी चारो ओर की देहप्रमाण ३॥ हाथ भूमि मे प्रवेश करे। फिर दोनो घुटनो के बल बैठकर दोनो घुटनो के बीच दोनो हाथो को जोडे। यो-गर्भस्थ शिशु के समान विनीत वज्रासन से बैठकर 'अ' का उच्चारण मन्द स्वर से करते हुए दोनो हाथो को लम्बा करके-गुरु-चरण को क्लामना न पहुँचे-इस प्रकार विवेक से गुरु के चरण का स्पर्श करे। यदि गुरुदेव न हो, तो चरण-स्पर्श की भावना करते हुए भूमिस्पर्श करे। फिर 'हो' का उच्च स्वर से उच्चारण करते हुए दोनो हाथो से अपने शिर का स्पर्श करें। इसी प्रकार 'का-य' तथा 'का-य' मे उच्चारण और चरण-शिर स्पर्श करे। 'सफास' कहते हुए गुरु के चरणो मे मस्तक का भी स्पर्श करें। इस प्रकार तोन आवर्तन और एक शिर का झुकाव हुग्रा।
उसके पश्चात् 'खमरिणज्जो' से 'दिवसो वइक्कतो' तक सामान्यतया पाठ पढ़ें। फिर १. ज-त्ता-भे, २ ज-व-णि, ३. ज्ज-च-भे, मे इन तीन अक्षर-समूह मे से पहले-पहले अक्षर का पहले के समान मन्द स्वर से उच्चारण करते हुए गुरु-चरण स्पर्श करे। दूसरे-दूसरे अक्षर का मध्यम स्वर से उच्चारण करते हुए हाथो को भूमि और शिर के बहुमध्य मे पल भर रोके । फिर तीसरे-तीसरे अक्षर का उच्चस्वर से उच्चारण करते हुए स्वय का शिर स्पर्श करे। पश्चात् गुरु के चरणो मे मस्तक मुकावे। यो दूसरे तीन श्रावर्तन और दूसरा शिर का भुकाव हुआ।
उसके पश्चात् 'खामेमि' से 'पडिकमामि' पाठ.सामान्यतया पड़े। यास्त्रियाए परिकमामि' कहते हुए खड़े हो जायें