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सूत्र-विभाग-४ दूसरा- तीसरा श्रावश्यक
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उ०. जो प्रमुव्रतो को गुरण अर्थात् लाभ पहुँचाते हो ।
प्र० : शिक्षाव्रत, किसे कहते है ?
उ० योग्य हो ।
जो बारबार शिक्षा अर्थात् अभ्यास करने
पाठ ४ चौथा... दूसरा-ज़ीसरा आवश्यक
- विधि : पहले आवश्यक की समाप्ति पर वंदना करके ' पहला सामायिक आवश्यक पूरा हुआ। दूसरे 'चतुर्विंशतिस्तव' आवश्यक की आज्ञा है' कहकर दूसरे प्रावश्यक की आज्ञा ले । आज्ञा लेकर १ बार चतुर्विंशतिस्तव का पाठ 'लोगस्स' कहे । इति दूस 1 प्रावश्यक, समाप्त ।
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समाप्ति पर वदना करके पहला सामायिक तथा दूसरा चतुर्विंशतिस्तव ये दो आवश्यक पूरे हुए। तीसरे वदना आवश्यक की श्राज्ञा है' -- कहकर तीसरे आवश्यक की आज्ञा लें । आज्ञा लेकर दो बार निम्नं पाठ पढ़ें 1
इति तीसरा - प्रावश्वक समाप्त ।
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'इच्छामि खमासमरणो' पढ़ने की विधि
गुरु के समक्ष या पूर्व, उत्तर या ईशान कोण मे अपने आसन को छोड़कर खड़े रहकर, हाथ जोड़कर और शीश