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________________ सूत्र-विभाग-४ दूसरा- तीसरा श्रावश्यक [ १६ उ०. जो प्रमुव्रतो को गुरण अर्थात् लाभ पहुँचाते हो । प्र० : शिक्षाव्रत, किसे कहते है ? उ० योग्य हो । जो बारबार शिक्षा अर्थात् अभ्यास करने पाठ ४ चौथा... दूसरा-ज़ीसरा आवश्यक - विधि : पहले आवश्यक की समाप्ति पर वंदना करके ' पहला सामायिक आवश्यक पूरा हुआ। दूसरे 'चतुर्विंशतिस्तव' आवश्यक की आज्ञा है' कहकर दूसरे प्रावश्यक की आज्ञा ले । आज्ञा लेकर १ बार चतुर्विंशतिस्तव का पाठ 'लोगस्स' कहे । इति दूस 1 प्रावश्यक, समाप्त । T I समाप्ति पर वदना करके पहला सामायिक तथा दूसरा चतुर्विंशतिस्तव ये दो आवश्यक पूरे हुए। तीसरे वदना आवश्यक की श्राज्ञा है' -- कहकर तीसरे आवश्यक की आज्ञा लें । आज्ञा लेकर दो बार निम्नं पाठ पढ़ें 1 इति तीसरा - प्रावश्वक समाप्त । J 'इच्छामि खमासमरणो' पढ़ने की विधि गुरु के समक्ष या पूर्व, उत्तर या ईशान कोण मे अपने आसन को छोड़कर खड़े रहकर, हाथ जोड़कर और शीश
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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