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सुबोध जैन पाठमाला--भाग २
पाठ ३ तोसरा 'इनहामि ठाएमि संक्षिप्त प्रतिक्रमण'
विधि : 'इच्छामि र भो' के पश्चात् वदना करके-'पहले सामायिक आवश्यक की आज्ञा है'-कहकर पहले आवश्यक की आज्ञा ले। फिर ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप सबंधी सभी प्रत्याख्यानो की स्मृति के रूप मे 'करेमि भते' पढे। यहाँ पहला आवश्यक समाप्त हो जाता है, पर आगामी चौथे अावश्यक की भूमिका के लिए इसी अावश्यक मे निम्न 'इच्छामि ठामि' का पाठ पढ़ें। फिर 'तस्स उत्तरो' कहकर कायोत्सर्ग करे। जैसे धोबी वस्त्र धोने से पहले 'वस्त्र मे कहाँ-कहाँ मैल लगा है' यह ध्यानपूर्वक देखता है, जिससे वस्त्र-शुद्धि उत्तम होती है, वैसे ही आगामी प्रतिक्रमण के लिए 'दिन आदि मे क्या-क्या अतिचार लगे हैं'- यह जानने के लिए कायोत्सर्ग मे ६६ अतिचार और समुच्चय १८ पाप का चिन्तन करे। अतिचारचिन्तन के लिए चौथे आवश्यक के 'पागमे तिविहे' से लेकर 'सलेखना' तक के १५ पाठो मे अतिचार अश वाले पाठ कहे। मिश्रित प्रतिक्रमण करने वाले कायोत्सर्ग मे अर्थ-प्रधान अतिचार मे पाठ पढते हैं और चौथे आवश्यक मे अन्तिम बार मूल-प्रधान अतिचार पाठ पढ़ते है। मूल-प्रधान प्रतिक्रमण वाले सर्वत्र मूल-प्रधान अतिचार पाठ पढते हैं और अर्थप्रधान प्रतिक्रमण वाले सर्वत्र अर्थ-प्रधान अतिचार पाठ पढते हैं। (१८ पाप के पश्चात् कई 'इच्छामि ठामि' भी ज विराहिय' तक पढने है) जिन्हे पाठ कठस्थ न हो, वे ८ लोगस्म या प्रति लोगस्म ४ नमस्कार मत्र के गणित से ३२ नमस्कार