________________ तत्त्व-विभाग-तीर्थङ्कर नाम गौत्र उपार्जन के 20 बोल [ 281 17. समाहि : छह काय जीवो को अभयदान देकर समाधि उत्पन्न करता हुआ जीव .. .. ."" करता है। 18. अपुव्व नारण गहरणे (अपूर्व ज्ञानग्रहण) * नित्य नया-नया सूत्रज्ञान कण्ठस्थ करता हुआ तथा अर्थज्ञान धारण करता हुआ जीव "..." करता है। 16. सुयभुत्ती (श्रुतभक्ति): जिनवाणी की (1 हृदय से श्रद्धा आदि बहुमान, 2. वचन से गुरगकीर्तन तथा, 3 काया से नमस्कार आदि) भक्ति करता हुआ जीव .....करता है। 20. पवयण पभावरणयां (प्रवचन प्रभावना): धर्मकथा वाद आदि से प्रवचन प्रभावना (ग्राम नगर आदि मे मिथ्यात्व की उत्थापना और सम्यक्त्व की स्थापना) करता हुआ जीव ......." करता है। // इति 2 तत्व विभाग समाप्त //