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तत्त्व विभाग-~-'पांच समिति तीन गुप्ति का स्तोक' [ २६५
पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, और वायुकाय की विराधना के कारण ये म्रक्षितादि चारो आहार सदोष हैं।
६. दायग (दायक): जो दान देने योग्य न हो, उनसे आहार लेना, जैसे-घर मे अकेला अबोध बालक हो, उससे आहार लेना या अन्धे, लूले, लगडे अन्य की सहायता के बिना दान दें, उनसे आहार लेना या, छह मास से अधिक काल की गर्भवती स्त्री बैठी हुई उठकर या खडी हुई बैठकर दान दे तो, उससे दान लेना। • घर के बडे, कृपग-लोगो को खेद, षट्काय की विराधना तथा गभस्थ जीव को पीडा आदि की सभावना के कारण यह आहार सदोष है। . .
- ७.-उम्मीसे (उन्मिश्र): सचित्त मिश्रित आहार आदि लेना।
८.-अपरिपय (अपरिणत): पूरा प्रचित्त न बना हुआ पाहार आदि लेना।
पूर्ण प्रासुक - (निर्जीव, अचित्त) न होने के कारण ये दोनो आहार सदोष हैं।
६. लित्त (लिप्त) : सचित्त मिट्टी जल आदि से तत्काल लोपी हुई भूमि पर चलकर दिया हुआ आहारादि लेना ।
पृथ्वीकाय और प्राप्काय की विराधना के कारण यह प्राहार सदोष है।
१०. छड्डिय (छदित) : घुटने से अधिक ऊपर से बूद आदि गिराते हुए दिया जाता हुया आहार आदि लेना।
वायुकाय को विराधना तथा गिरने से पटकाय की विराधना संभव होने से यह अाहार सदोष है ।