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२६४ ] सुबोध जैन पाठमाला भाग २
एषणा दोष : साधु और गृहस्थ दोनो की अोर से गौचरी मे लगाने वाले दोष।
१ संकिय (शंकित): 'यह प्राहार आदि प्रासुक-एषणीय है या नही ?' ऐसी शंकावाला आहार आदि (जब तक शका दूर न हो, उससे पहले) लेना।
'शकित' आहार 'अप्रासुक-अनेषणीय' भी हो सकता है; इसलिए यह आहार सदोष है।
२. मक्खिय (म्रक्षित): १. दाता २ दान के-पात्र या ३ दान के द्रव्य, सचित पृथ्वी, पानी, अग्नि या वनस्पति से सघट्ट युक्त (स्पर्श युक्त, छुए हुए हो) तो १ उस दाता से या २ उस दान के पात्र से या ३. वे द्रव्य लेना।
३. निक्खिय (निक्षिप्त) : १ या दान के पात्र या दान के द्रव्य, सचित पृथ्वी आदि पर हो, तो १. उस दाता से या २. उस दान के पात्र से या ३ वे द्रव्य लेना।
४. पिहिय (पिहित) : १. दाता या २. दान के पात्र या ३ दान के द्रव्य के ऊपर सचित्त पृथ्वी आदि हो, तो १ उस दाता से या २ उस दान पात्र से या ३. वे द्रव्य लेना।
५. साहिरिय (साहत) : १. दाता सचित्त पृथ्वी आदि के सघट्ट को दूर करके या सचित्त पृथ्वी आदि से उतर कर या सचित्त पृथ्वी आदि को उतार कर दान दे, या दान के पात्र या दान के द्रव्यो को संघ से हटाकर या सचित्त पृथ्वी श्रादि पर से उठाकर या उन पर रहे सचित्त पृथ्वी आदि को उतार कर दे तो आहार लेना।