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सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
पाठ २ दूसरा
पहला आवश्यक
विधि : मुनि-स्थान, पौषधशाला आदि निरवद्य स्थान मे पहले सामायिक करे। यात्रा आदि का आगार। फिर क्षेत्र विशुद्धि (चउवीसत्थव) करे, इसकी विधि-'तिक्खुत्तो से तीन बार वन्दना करे, फिर इच्छाकारेण तस्सउत्तरी बोलकर दो लोगस्स का ध्यान करे। नमस्कार मत्र से कायोत्सर्ग पार कर ध्यान पारने का पाठ कहे, फिर प्रकट एक लोगस्स कहकर दो 'नमोत्थुण दे।' यो क्षेत्र-विशुद्धि करके तिक्खुत्तो से तीन बार गुरुदेव को या पूर्व-उत्तर दिशा मे भगवान् को वदना करके 'प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने (ठाने) की आज्ञा है।' कहकर प्रतिक्रमण प्रारभ की आज्ञा ले। 'सुनने वाले, सुनानेवाले के प्रति आपकी निश्रा है।' कहकर निश्रा ग्रहण करे। सुनाने वाला सुननेवालो के प्रति 'कीजिए।' कहकर निश्रा की स्वीकृति दे। फिर खडे रहकर हो यह पाठ कहे
१. 'इच्छामि रणं भन्ते' प्राज्ञा का पाठ इच्छामि रणं : मै चाहता हूँ (रण वाक्य अलकार मे) भते !
: हे भगवन् ! (हे पूज्य ) तुन्भेहि
: आपके द्वारा अन्भणुण्णाए समारणे : आज्ञा मिलने पर देवसियां
: दिन सबधी
जिहां-जहाँ 'वेवसिय' शब्द प्रावे, वहाँ वहाँ रात्रिक (प्रात ) प्रतिक्रमण में 'राइय', पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'देवसिपंपक्खियं'. चातुर्मासिक