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________________ तत्त्व-विभाग-चौबीसवां बोल : 'करण-योग के ४६ भंग' [ २४५ तेवीस-तेवीस भेद, यो गन्ध के छयालीस भेद हुए (२x२३ -- ४६) । रस के पाँच-१. तीखा, २. कडवा, ३ कषेला, ४. खट्टा, ५ मीठा। एक-एक के बीस-बीस भेद-यो रस के सौ भेद हुए (५४२०% १००)। स्पर्श के आठ-१ खरदरा, २ सुहाला, ३. भारी, ४. हल्का, ५ शीत, ६. उष्ण, · चिकना, ८. रूखा। एक-एक के तेवीस-तेवीस भेद-यो स्पर्श के एक सौ चौरासी भेद हुए (८४२३= १८४)। सस्थान के छह-१. परिमण्डल (चूडी या गेद के समान खाली गोल), २. वृत्त (थाली या लड्डू के समान भरा हुआ गोल) ३. व्यस (तिकोना), ४ चतुरस्र (चौकोन), ५. प्रायत (लम्बा)। एक-एक के बीस-बीस भेद-यो सस्थान के सौ भेद हुए (५४२० = १००) । २४ वाँ बोल : 'करण-योग के ४६ भंग' भग-विकल्प, भेद, प्रकार । एक करण एक योग के नव भंग जैसे '११' मे पहला अङ्क एक है और उसके पीछे भी एक का ही अङ्क जुडा है, वैसे ही पहले एक-एक करण लेकर उसके पीछे भी एक-एक योग जोडने से ६ भग' बनते हैं। वे इस प्रकार हैं १. करूंगा नहीं, मन से; २. करूँगा नही, वचन से; ३. करूँगा नहीं, काया से। ४. कराऊँगा नहीं, मन से, ५. कराऊँगा' नही, वचन से; ६. कराऊँगा नहीं, काया से। ७. अनुमोदूंगा नहीं, मन से; ८ अनुमोदूंगा नहीं, वचन से; ६. अनुमोदूंगा नहीं, काया से ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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