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तत्त्व-विभाग-ग्यारहवाँ बोल : 'चौदह गुणस्थान' [ २३१
१. मिथ्यात्व गुणस्थान : मोहनीयकर्म के तीव्र उदय से होनेवाली मिथ्यादृष्टि अवस्था ।
२. सास्वादन गुणस्थान : अविरत सम्यग्दृष्टि की अवस्था से मिथ्यादृष्टि अवस्था की ओर गिरती हुई अवस्था ।
३. मिश्र गुरणस्थान : कुछ मिथ्यादृष्टि और कुछ सम्यग्दृष्टि, -इस प्रकार मिलीजुली अवस्था । ____४. अविरत सम्यग्दृष्टि गुण स्थान : चारित्र रहित सम्यग्दृष्टि अवस्था।
५. देशविरति (श्रावक) गुणस्थान : देश (=कुछ) चारित्र सहित श्रावक अवस्था ।
६. प्रमत्तसंयत (अप्रमादी साधु) गुणस्थान : सर्व (=सम्पूर्ण) चारित्र सहित, किन्तु प्रमादयुक्त, ऐसी साधु अवस्था ।
७. अप्रमत्तसयत (= अप्रमादी साधु) गुणस्थान : प्रमादरहित साधु अवस्था ।
८. निवृत्ति (=नियट्टि) बादर सम्पराय गुरणस्थान : बादर कषाय सहित ऐसी साधु अवस्था, जिसमे सम समयवर्ती सभी जीवो के अध्यवसाय विषम भी हो सकते हो।
६. अनिवृत्ति (=अनियट्रि) बादर सम्पराय गुणस्थान : बादर कषाय सहित ऐसी साधु अवस्था, जिसमे सम समयवर्ती सभी जीवो के अध्यवसाय समान ही होते हो।
१०. सूक्ष्म-सम्पराय गुरण-स्थान : सूक्ष्म लोभ सहित साधु अवस्था।