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सूत्र-विभाग-१. प्रवेश प्रश्नोत्तरी
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१. 'जिमने सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन पाया, वही सम्यक्तया पाप और धर्म को समझकर अपने पापो का सच्चा पश्चात्ताप-रूप प्रतिक्रमग कर सकेगा'-यह बताने के लिए प्रतिक्रमण का चौथा स्थान रक्खा है। २ 'सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन पाने के बाद या चारो को पाने के वाद प्रायः उनमें अनाभोगादि से अतिचार लगते रहते है।' अत. उन अतिचारो के प्रतिक्रमण के लिए भी प्रतिक्रमण का स्थान चौथा रक्खा है।
__ अनाभोग प्रादि से लगने वाले अतिचारो की अपेक्षा अविवेक, असावधानी आदि से लगे बडे अतिचारो की कायोत्सर्ग शुद्धि करता है। इसीलिए कायोत्सर्ग को पाँचवाँ स्थान दिया है तथा अविवेकादि से लगने वाले अतिचारो की अपेक्षा जानते हुए दप आदि से लगे बडे अतिचारो की प्रत्याख्यान शुद्धि करता है। अत प्रत्याख्यान को छठा स्थान दिया है। अथवा प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के द्वारा अतिचार की शुद्धि हो जाने पर प्रत्याख्यान द्वारा तप-रूप नया लाभ होता है। अत प्रत्याख्यान को छठा स्थान दिया है।
प्र० . ये आवश्यक कब किये जाते है ?
उ० जब भी अनुकूल अवसर (समय) मिले, तभी किये - जा सकते हैं। पर - १. दिन के अन्त मे अर्थात् सूर्यास्त के
पश्चात् और मन्द तारे.दिखने लग जायँ, लाली और प्रकाश मिट जायं-इसके. बीच लगभग एक मुहूर्त मे, २ रात्रि के अन्त मे अर्थात् मन्द तारे दिखने बन्द हो जायें, लाली और प्रकाश प्रारम्भ हो जायें, तब से लेकर सूर्योदय के पहले तक लगभग एक मुहूर्त मे, ये छहो आवश्यक अवश्य करने चाहिएँ ।